रेखा स्त्री को लोग 'रल' कहते हैं। स्त्री-रत्न की वडी-वडी बातें बढी-चढी सुनाते हैं। परन्तु अन्य रत्नो की अपेक्षा स्त्री-रत्न बहुत सस्ता है, क्योकि वह दुष्प्राप्य नही है, आसानी से मिल जाता है। परन्तु केवल यही वात नहीं है, स्त्री के लिए बडे-बडे मूल्य भी चुकाए गए हैं। सोने की लका जला कर छार कर दी गई थी। कुरुक्षेत्र-सग्राम में रक्त के गारे मे खडे होकर भीम ने दु शासन के वक्ष से एक चुल्लू खून लेकर द्रौपदी की रक्त से माग भरी थी। ट्राय के भीषण सग्राम मे समूची एक पीटी ध्वस हो गई थी। अाज भी स्त्री रत्न ही है। पर उसके मूल्याकन का दृष्टिकोण नया बन गया है। सेवा और प्रेम के बदले कष्ट सहकर मौन रहना स्त्री का सबसे बडा गुण माना गया है, पर शायद तव भी और अब भी स्त्री का मूल्य केवल इस बात पर आका जाता है कि वह कहा तक पुरुष को अपना- पन अर्पण कर सकती है , कहा तक पुरुष की प्रवृत्ति को निबद्ध और तृप्त रख सकती है। हिन्दुओ के धर्मशास्त्रो और आचारशास्त्रो मे भी स्त्री के इस गुण को 'सती-धर्म' कहा गया है और उस पर यह हाशिया चढाया गया है कि स्त्री के लिए इससे बढकर दूसरा कोई गुण नहीं हो सकता। परन्तु यह स्त्रियो के लिए रिजर्व सतीत्व 'आचरण की पवित्रता' नही कहा जा सकता। आचरण की पवित्रता की सीमा मे तो यह गुण तव आता जब स्त्री-पुरुष दोनो के लिए समान होता। पर 'सतीत्व' केवल स्त्रियो ही के लिए है। उसके मुकाबले पुरुष की वह उच्छ खल प्रवृत्ति है
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