१४२ पत्थर-युग के दो वुत परन्तु यह ठीक है कि सतान-उत्पत्ति एक महत्त्वपूर्ण वात है और सामाजिक जीवन का वह अत्यन्त आवश्यक क्रिया-कलाप है, पर विज्ञान ने अब यह प्रमाणित कर दिया है कि सौ मे सत्तर स्त्रियो के सतान न होने का कारण पुरुपो का दोप है। पर इसको छोडिए। और भी बातें हैं जिनसे यह कहा जा सकता है कि पुरुप स्त्री से अपने स्वार्थ का ही मम्बन्ध रखता है, और स्त्रिया इस बात को नही समझती। समझ भी कैसे सकती है? विवाह के बाद जो छोटी-मोटी सुख-सुविधा और स्वामित्व उसे मिल जाता है, वह तो उसी मे खो जाती है। पति के जरा-से आदर-सत्कार, लाड-प्यार को देखकर, वह यह कल्पना भी नहीं कर सकती कि वह मेरी मगल-कामना नही करता। न वह अपने पिता के ही सम्बन्ध मे ऐसी बात सोच सकती है, परन्तु जव स्त्री-जाति के समूचे सुख-दुख और उसके विवश जीवन पर विचार किया जाता है तो पता लगता है कि पति और पिता दोनो ही ने केवल अपना ही मगल, अपनी ही सुविधाए देखी है, स्त्री की नही। स्त्री को यह अवश्य सोचना चाहिए कि ससार-भर मे जीवन के नियमो का निर्माण पुरुपो ने किया है । पुरुषो के स्वार्थों और उनकी सुख-मुविधागो को उन्होने प्राथमिकता दी है, और उन नियमो का निर्माण करते समय वे न पिता थे, न भाई, न पति, वे केवल पुरुष थे और स्त्रिया उनकी आत्मीय न थी, केवल स्त्री थी। पिता ने पिता बनकर पुत्री के सुख-दु ख का विचार नहीं किया, न पति ने पति वनकर पत्नी पर ममता की। वे पुरुष थे, इस- लिए केवल पुरुप के स्वार्य को सामने रखकर उन्होने समाज और धर्म- सम्बन्धी कानून बनाए, और उन सब नियमो-कानूनो का यही अभिप्राय रहा कि स्त्रियो से पुरुप अपना प्राप्तव्य अधिक से अधिक कितना और कैसे वसूल करे । मनु पाए,पाराशर पाए,बुद्ध आए, मूसा आए,ईसा पाए, शकर पाए, और श्लोक पर श्लोक रचकर, सिद्धात पर सिद्धात रचकर शास्त्र-वचन की उनपर मुहर लगा दी। इस प्रकार पुरुपो के स्वार्थ ने धर्म वनकर समाज पर शासन करना प्रारम्भ कर दिया। धर्म के सामने भला 1
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