पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६२
पत्थर-युग के दो बुत
 

१६२ पत्थर-युग के दो वुत ही-ही" - "ये कैसी वाते कर रहे हो? क्या हो गया है तुम्हे ? तुम्हारी पाखें कैसी हो रही है ?" "पाखे ? क्या इनमे से आग के शोले निकल रहे है "खैर, चाय यही ले पाऊ?" "ले आओ, ले पायो। अथवा यही बैठी रहो। इसी तरह पट्टी वाधती रहो।" "पट्टी तो बध चुकी।" "अफसोस । एक ही जख्म था । और भी कही "मैं चाय लाती " और रेसा ने चाय का प्याला मेरे हाथ में थमा दिया। मैंने समझा शराब है। मैंने कहा, "तुमने तो कहा था कि मत पिया करो।" "क्या?" ?" 11 "शराब।" "यह क्या शराव है ?" "शराव नही है "चाय है, चाय।" चाह है, चाह है मेरी हँसी फ्ट निकली। और चाय का प्याला मेरे हाथ से छूट गया। रेखा घबरा गई है। शायद उसकी प्राखो आसू उमड पाए। उसने कहा, "तुम्हारी तबीयत खराब है। क्या डाक्टर को बुलाऊ "डाक्टर को? लेकिन तुम क्यो? वे तो स्वय ही बुला लेगे। पर अभी हुअा ही क्या है ?" "तुम कैमी वाते कर रहे हो? चलो, आराम करो।" "पाराम तो म कर चुका है।" चाय भी तो नहीं पी" "लाग्रो दो-पील ।" 1