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पत्थर-युग के दो बुत
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पर-युग के दो वुत उत्साह एव ग्रानन्द प्रदान करते है इन ग्रावेगो को वश म करना काम है। जो आदमी सभ्यता के निर्माण में भाग ले रहा हो उमम कामगावेगो का विरोव उठ खडा हो तो वह उस व्यक्ति की क्रियानि दूसरी ओर मोड देगा-यह एक बहुत बड़ा खतरा है। काम-ग्राग यौन-जीवन का महत्त्व सबके सामने खोलकर नहीं रखा ना माना। सामाजिक हितो के विरुद्ध है। इमी मे इस मामन म मयम का दान लेना पड़ता है। पर सयम की भी तो अन्तत मीमा है। पान ग्रावग ग्री- सयम की सीमाए जहा टकराती है वहा कुछ गलतिया हानी पोर वे कभी-कभी ऐमी भारी हो उठती है कि मनुष्य का माग जीवन या अस्त-व्यस्त हो उठता है अथवा मनुष्य अात्मघात या उन भी र देखिए, खून के नाम से प्राप डरिरा मत । दम पन म f. हूं कि मैं खून करने की मनोवैज्ञानिक पाठभूमि प-विवार रन पर मैं कोई मूढ, क्रोधी और ईर्यालु पनि नहीं है । एक मदर ग्रौला र न अपनी सव जिम्मेदारियो से परिचित पनि हूँ । ना मुनि शायद फिर आप न सुन सके कुछ ऐसी अवस्था पाती है मह 11 वाने बहुत हलकी दिखाई देती है । पर उनके खुन न हम बड़ी पटी या के निर्णय पर पहुचत है । उस समय हम उनकी ग्रार दयन ना न? यह नहीं सोचते कि य मामूली वाते काय-कारगण निपम न व और वे जिस रूप मे घटित हुई है उसम मर रूप न नी प्रतिम हा-' है, जिनसे जीवन-मरण का मकट ग्रा उपम्बिन हाना है । पौन जीवन का अच है ---अनुचित ग्रचात जिनका चाहिए । परन्तु सव काम- -वृत्तिया पतन का निह है - सभाग के पालम्बन ने अनियमित नम्वन्ध हम ग्राादम नगर्ग की सभ्यता तर मे वैसा ही दखत है। टिमकान म नि-प्रवृत्तियो के समूह मे --मतुष्टि और प्रवीन कवी है। प्रात योन तृप्ति पी दुष्ठान मान लीक ' -'. काम-अधा एक भीपण नख है। यह वहन हैन !' 7