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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/६०

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५८
पत्थर-युग के दो बुत
 

५८ पत्थर-युग के दो बुत रही थी। इस कारण माया की प्राप्ति से मेरे जीवन की एक पूर्ति हो गई। मैंने अपने को माया के अर्पण कर दिया है-तन से भी और मन से भी। और अव मैं उसका बड़े से बडा मूल्य चुकाने पर आमादा हूँ । अब तो मेरा मुझाया हुया यौवन फिर से हरा-भरा हो गया है। माया ने मुझसे विवाह का प्रस्ताव किया है । उम सम्बन्ध की सब प्रतिकूल-अनुकूल बातो पर हमने विचार कर लिया है और मैंने सब कुछ उसी पर छोड दिया है। वह एक हौसलेमन्द औरत है। और में आशा करता हू कि उसे पत्नी के रूप मे प्राप्त कर मैं अपने अब तक के अपूर्ण जीवन की पूर्णता को प्राप्त कर लूगा।