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पत्थर-युग के दो बुत
८५
 

पत्थर-युग के दो वुत ८५ और जीवन की सीधी-सरल राह-सहस्राब्दियो से समाज के नियन्ना मनीषियो ने जिनका निर्माण किया था-छोडकर मैं कटीली झाडियो ने भटक गई। कौन अव मुझे राह दिखाएगा? कोन मुझे सीवी राह पर लाएगा ? कौन मेरा हितू है ? कौन मेरा सहायक है ? अरे, मैं नो बुद ही अपनी दुश्मन बन गई। मैंने अपने ही हाथ से अपनी राह मे कुए लोद लिए। भोजन मे रेत मिला लिया, अधकार जीवन को अपने में समेटता- सा आ रहा है, भगवान् ही जानता है कि अजाम क्या होगा -