सुधाकर-चन्द्रिका। - बहुत । मउलसिरि = मौलसिरी। पुहुपावती = पुष्पवती = फूल से भरी। जाही। जूही। सेवती। मोनिजरद = सोनजर्द, जिस का सोने-सा पौला फूल हो । केसर, सिंगार-हार = हर-टङ्गार = पारिजात । नागेसर = नागेश्वर । कूजा = एक प्रकार का गुलाब । सतिबरग सदवर्ग = मौ पत्तियाँ जिस के फूल में हाँ अर्थात् हजारा। चंबेइ लौ = चैबेली । कदम कदम्ब। सुरस = जिस में सुन्दर रस हाँ, रमबेदूलौ = घनबेलो। (३५ दोहे को टौका देखो) । एक दिन पूर्णिमा तिथि श्राई, (पूर्णिमा पर्व समझ कर ) ( पद्मावती), जिस मानस- रोदक को प्रशंसा ३१ वे दोहे में कर आये हैं, उस में स्नान करने को चली ॥ ( स्नान करने के लिये ) पद्मावती ने सब सखियों को बुलाया। (सुनते-हौ) सब को सब चली आई। (उस समय ऐसौ शोभा हुई ), नानौँ ( पद्मावती के निकट) फुलवारी चली आई । ( यहाँ मखियों का झुण्ड फुलवारौ है, उस में रङ्ग रङ्ग के वस्त्र आभूषण से सुशोभित मखियाँ फूल-मौं जान पड़ती हैं ) ॥ उस झुण्ड-रूपौ फुलवारी में कोई सखौ चंपा, कोई सखौ (महेलो) कुन्द, कोई जो केतको है सो, कोई करना, कोई रम को लता (रस बेली), कोई जो गुलाल है सो, कोई लाल (राते.) सुदर्शन, कोई खिले हुए (विहंसते ) बकावली के ढेर (बकुचन ), कोई फूल से लदी (पुडपावती ) मौल- मिरी, कोई जाही, कोई जूही, कोई सेवती, कोई सोनजर्द, कोई केसर, कोई हरसिंगार, कोई नागेश्वर, कोई कूजा, कोई मदवर्ग, कोई चंवेली, कोई सुरस कदम्ब, और कोई रस-बेलौ (घन-बेदलौ = मुंगरा बेला) हैं ॥' सब सखी मालती के संग चलौं, अर्थात् मालती-रूप पद्मावती के संग चलौं। सब मखौ ऐसौ फूली हुई हैं, अर्थात् प्रसन्न हैं ॥ जैसे कमल और कुमुद (कोई ) उन फूल-रूपी सखियों के श्रामोद परिमल (भानन्द देने-वाला पुष्प-रम, अर्थात् सुगन्ध-द्रव्य ) के बाम (सुगन्ध) राजा गन्धर्व-सेन के गण (नौकर चाकर जो कि रक्षा के लिये दूर दूर हैं ) को बेध रहे हैं, अर्थात् उन के अन्तःकरण में प्रविष्ट हो रहे हैं ॥६० ॥ . चउपाई। गई। खेलत मानसरोदक जाइ पालि पर ठाढी भई ॥ देखि सरोवर रहसहि केलौ। पदुमावति सउँ कहहिँ सहेली ॥ अइ रानौ मनु देखु बिचारी। प्रहि नइहर रहना दिन चारी ॥
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