१२० पदुमावति । ७ । वनिजारा-खंड । [७६ अथ बनिजारा-खंड ॥७॥ चउपाई। चितउर गढ कर एक बनिजारा। सिंघल-दीप चला बइपारा ॥ बाम्हन हत प्रक नसट भिखारौ। सो पुनि चला चलत बइपारी ॥ रिनि काहू कर लौन्हेंसि काढौ। मकु तहँ गए होइ किछु बाढौ ॥ मारग कठिन बहुत दुख भण्ज। नाँघि समुदर दीप ओहि गण्ज ॥ देखि हाट किछु सूझु न ओरा। सबइ बहुत किछु देखु न थोरा ॥ पइ सुठि ऊँच बनिज तहँ केरा। धनी पाउ निधनो मुख हेरा ॥ लाख करोरिन्ह बसतु बिकाहौँ । सहसन्ह केरि न कोइ ओनाहीं॥ दोहा। सब-ही लौन्ह बिसाहना अउ घर कौन्ह बहोर । बाम्हन तहवाँ लेइ का गाँठि साँठि सुठि थोर ॥ ७६ ॥ - बनिजारा=वणिक् = वणिज बनिया। बदूपारा व्यापार। बाम्हन = ब्राह्मण। हत = हता= श्रामौत् = था। नमट = नष्ट = अधम = नौच । भिखारी = भिक्षुक । बदपारौ व्यापारी। रिनि = ऋण = -कर्जा । बाढी = वृद्धि। नाँघि = लवयित्वा = लाँघ कर । समुदर = समुद्र। श्रीरा=ोर = वार = किनारा। सुठि = सुष्छु = अति-उत्तम । बनिज = वाणिज्य । निधनौ = निर्धनौ। हेरा = हेरता है = देखता है। लाख = लक्ष। करोरिन्ह ।
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