सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पदुमावति । ७ । बनिजारा-खंड । [0€ - co अब (फंसने पर) गले के कण्ठे-रूपौ फन्दे को मैं ने पहचाना, देखें (श्रागे ) गले के फन्दे ( कण्ठे) क्या किया चाहते हैं । (कुछ ) पढ गुन कर देखा, कि आगे वही (सो) (प्राण जाने कौ) डर है। (दूस लिये) सब जगत् अन्धकार जान कर, बुद्धि खो कर, (पढा) भूल रहा हूँ॥ ७९ ॥ मैं ने बहुत चउपाई। सुनि बाम्हन बिनवा चिरि-हारू। करु पंखिन्ह कह मया न मारू ॥ कित रे निठुर जिउ बधसि परावा। हतिभा केर न तोहि डरु अावा ॥ कहसि पंखि-खाधुक मानावा। निठुर तेइ जो पर-मँस खावा ॥ आवहि रोइ जाहि कइ रोना। तब-हुँ न तजहि भोग सुख सेना ॥ अउ जानहि तन होइहि नास्त्र । पोखहि माँस पराए माँव ॥ जउँ न होत अस पर-मँस खाधू । कित पंखिन्ह कहँ धरत बिाधू ॥ जो रे बिआध पॅखिन्ह निति धरई। सो बैंचत मन लाभ न करई ॥ दोहा। बाम्हन सुआ बेसाहा सुनि मति बेद गरंथ । मिला आइ साथिन्ह कह भा चितउर के पंथ ॥८० ॥ - चिरि-हारू = चटक-हर = व्याध । मया = माया = मोह = दया। निठुर = निष्ठुर कठोर । हतित्रा = हत्या पाप । खाधुक = खाद्यक = भक्षण = भोजन। मानावा = मानव = मनुष्य (खावा का तुक मिलाने के लिये मानावा किया है)। पर-मस = पर-मांस दूसरे को मांस । श्रावहि = श्राता है। रोइ =रो कर। जाहि= जाता है। तजहि त्याग करता है। सोना सयन। जानहि जानता है। नासू = नाश । पोखहि = पुष्णासि = पोषता है = पालता है। बसाहा = खरौदा । गरंथ ( शुक की बातें) सुन कर ब्राह्मण ने व्याधे से विनय किया, (कि) पक्षियों के ऊपर दया कर मार मत (न) ॥ रे निष्ठुर (व्याध), क्यों दूसरे ( परावा) को बध करता है ( कोई परेवा का अपभ्रंश परावा को कहते हैं तब “अरे निष्ठुर व्याध, क्यों = ग्रन्थ ॥