१४२ पदुमावति । ८ । नागमति-सुधा-संबाद-खंड । [.. पंडित राते बदन सरेखा। जो हतिबार रुहिर सो देखा । को परान घट आनहु मतो। को चलि होहु सुत्रा सँग सतौ ॥ दोहा। जनि जानहु कइ अउगुन आसु मटि कंत कर मंदिर होइ सुख-राज। का कर भा न अकाज ॥१०॥ लाल त्राप्रम कान्त = बिश्रोग= वियोग। बिकरम = विक्रम। अंब्रित = अमृत। दुख-खंडित = दुःख-खण्डित
दुःख को खण्डित करने-वाला = दुःख को दूर करने-वाला । निरदोखा = निर्दोष
विना दोष का। हुते = से। सूधौ = शुद्ध। निबूधौ = निर्बुद्धि = बे-बुद्धि। राते ललित = रक्त। बदन = वदन मुख। सरेखा = श्रेष्ठ = चतुर । हतिबारा हत्यारा। रुहिर = रुधिर । परान प्राण । घट = शरीर। आनहु = ले आवो। मती = नागमती। सती =भस्म । अउगुन = अवगुण । मँदिर = मन्दिर। राज = राज्य। = आज्ञा। मैटि = मिटा कर। कंत पति = खामौ। अकाज = अकार्य॥ राजा (रानी से यह बात ) सुन कर तैसा-हौ वियोग माना, अर्थात् तैमा विरह से व्याकुल हुआ, जैसा कि राजा विक्रम (वियोग से) पछताया ॥ ( कहावत है, कि राजा विक्रम के पास एक हौरा-मणि तोता था। उस ने एक दिन राजा-रानी को एकान्त में बैठा देख, निवेदन किया, कि बन से पाये बहुत दिन हो गये, श्राज्ञा हो तो कुछ दिन के लिये वन-विहार कर पाऊँ, और आप लोगों के लिये अमर-फल ले श्राऊँ, जिस के खाने से मनुष्य न रद्ध हो और न मरे। इस बात पर प्रसन्न हो राजा- रानी ने उसे छोड दिया। कुछ दिनों तक वन में विहार कर साथियों से मिल अपने चच्चु में एक अमर-फल को ले कर लौटा, और राजा-रानी को प्रणाम कर फल को दिया। राजा-रानी ने विचारा, कि इस एक फल से तो एक-हौ मनुष्य युवा और अमर होगा, इसे लिये माली को बुला कर, इसे सौंपना चाहिए, जिस दूस के बीज से वृक्ष तयार करे। निदान माली ने बडे यत्न से बीज बो कर वृक्ष तयार किया। जब वृक्ष में फल लगे तब राजा ने आज्ञा दिया, कि इस में से जो फल पक कर टपके उसे रानी को देना। दैवात् एक रात को एक फल टपका, उस के सुगन्ध से मोहित हो, एक महा विष-धर सर्प ने उसे अच्छी तरह से चाटा, जिस वह