पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२२९

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६४] सुधाकर-चन्द्रिका। १४८ अथ राजा-सुथा-संवाद-खंड ॥६॥

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चउपाई। राजद कहा सत्त कहु सूआ। बिनु सत कस जस सेवरि भूत्रा होइ मुख रात सत्त कह बाता। जहाँ सत्त तह धरम सँघाता॥ बाँधी सिसिटि अहइ सत केरौ। लछिमी आहि सत्त कइ चेरी॥ सत्त जहाँ साहस सिधि पावा। अउ सत-बादी पुरुख कहावा ॥ सत कह सती सँवारइ सरा। आगि लाइ चहुँ दिसि सत जरा ॥ दुइ जग तरा सत्त जेइ राखा । अउरु पिआर दइहि सत-भाखा ॥ सो सत छाँड जो धरम बिनासा । का मति हिअइ कीन्ह सत-नासा ॥ दोहा। तुम्ह सयान अउ पंडित अ-सत न भाखहु काउ । सत्त कहहु तुम्ह मो सउँ दहुँ का कर अनित्राउ ॥ १४ ॥ मत्त = सत्य । सत = सत्य । सेवरि= सेमर = शाल्मली। भूत्रा = सेमर के फल की रात = रक्त = ललित । धरम = धर्म। सँघाता= संघात = समूह । सिसिटि= सृष्टि । लछिमौ= लक्ष्मी। श्राहि = है। चेरौ चेटिका = लाँडौ। सिधि = सिद्धि। सत-बादौ = सत्य-वादी = सत्य बोलने-वाला । पुरुख जो स्त्री मृत-पति के माथ भस्म होने चलती है। सरा = शर=चिता। पिार = प्यार = प्रिय । ददहि = ईश्वर को= देव को। भाखा = भाषा। बिनासा = विनाश किया । सत-नासा = सत्य-नाश 1 = पुरुष। सती