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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२४२

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Hong पदुमावति । । राजा-मुया-संवाद-खंड । [१०० चउपाई। राजइ लौह अभि कइ साँसा । अइस बोलि जनि बोलु निरासा ॥ भलेहि पेम हइ कठिन दुहेला। दुइ जग तरा पेम जेइ खेला ॥ भौतर दुख जो पेम मधु राखा। गंजन मरन सहइ जो चाखा ॥ जो नहिँ सौस पेम पँथ लावा । सो पिरिथुमिँ मँह काहे क आवा ॥ अब मइँ पेम फाँद सिर मेला। पाउँ न ठेलु राखु कइ चेला । पेम-बार सो कहइ जो देखा। जेइ न देख का जान बिसे खा ॥ तब लगि दुख पिरितम नहिँ भेंटा। मिला तो गाउ जनम दुख मैंटा ॥ जस अनूप हइ मोहिं आ 1 ऊभि = ऊब कर = रहित । भलहि = भले से। पेम = प्रेम । दुहेला = दुहेला = दुष्ट-खेल = दुःख से भरा। मधु = शाहद। गंजन = गञ्जन = मान-ध्वंस = अपमान। मरन = मरण । सहद् = सहता है। चाखा= चाषा = चूमा = खादु लिया। मौम = शीर्ष = शिर। पँथ = पन्था-राह। पिरिथुमि = पृथिवी - भूमि। मेला = डाला। पाउँ= पैर। ठेलु = टाल = हटाव । राखु = रख । कद् = कर के। चेला = शिय्य । बार-द्वार। विसेखा = विशेष। पिरितम

प्रौतम = प्रियतम = सब से प्यारा। नख= नह । सिख = शिखा = चोटौ। बरन

वर्णय = वर्णन कर। सिंगार - श्टङ्गार। श्रास = आभा = उम्मेद। जउ = यदि। मेरवदू -मिलावे। करतार = कर्तारःब्रह्मा । (शुक के कहने पर) राजा ने ऊब कर (घबडा कर) श्वास लिया, (और कहने लगा, कि) ऐमी निराश बोलो मत (जनि) बोल ॥ भले से दुःख से भरा (दुहेला) प्रेम कठिन है, (परन्तु) उस प्रेम से जिस ने खेला वह दोनों जग को तर जाता है, 11