पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२७४

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१८४ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [१०८ चउपाई। दसन चउक बइठे जनु होरा। अउ बिच बिच रँग सावँ गंभौरा॥ जनु भादउ निसि दाविनि दोसौ। चमकि उठइ तस बनी बतौसौ ॥ वह सो जोति होरा उपराहौँ। होरा देहि सो तेहि परिछाहौं। जेहि दिन दसन-जोति निरमई। बहुतइ जोति जोति वह भई ॥ रबि ससि नखत दिपहि तेहि जोती। रतन पदारथ मानिक मोती ॥ जहँ जहँ बिहंसि सोभाोन हँसौ। तह तहँ छिटकि जोति परगसौ॥ दावनि चमकि न सरिवरि पूजा। पुनि ओहि जोति होइ को दूजा ॥ - दोहा। (बिहँसत) हँसत दसन तस चमकद्र पाहन उठइ झरकि । दारिउँ सरि जो न कह सका फाटेउ हिला तरक्कि ॥ १०६ ॥ 1 दसन = दशन = दाँत । चउक = चतुःकोण = चौकोन पौढा वा पिमान से पूरा हुआ चौकोन क्षेत्र, जिम के ऊपर लोग मङ्गल-कार्य में बैठते हैं । रँग = रङ्ग । सावं = श्याम

काला। गंभौरा=गम्भीर = गहिरा। भादउ भाद्रपद =भादो मास । निसि

निशि = रात्रौ। दानि = दामिनी = विद्युल्लता। दौसौ = दृष्टि पडी। देहि = देह = शरीर। परिछाहौँ = परिच्छाया। जोति = ज्योति। निरमई = निर्मित हुई = बनाई गई। रबि = रवि = सूर्य। ससि = पाशी = चन्द्र । नखत = नक्षत्र । दिपहिँ =दीप्त होते हैं = प्रज्वलित हैं = चमकते हैं। रतन = रत्न। पदारथ = पदार्थ। मानिक =माणिक्य । मोती = मुक्ता । जहँ जहँ = यत्र यत्र = जहाँ जहाँ । साभान = स्व-भावेन = सहज-हौ। तह तह = तत्र तत्र तहाँ तहाँ। छिटकि= छटक कर = उच्छलित हो कर । परगसौ परकाशित हुई = प्रकाशित हुई। सरिवरि= बराबरी में = मादृश्य-पर। पूजा = पूरा पडा। दूजा = द्वितीय = दूसरा ॥ चमकद् चमकता है। पाहन = पाषाण = पत्थल। उठद = उठता है= उत्तिष्ठते। झरक्कि = झलक । दारिउँ = दाडिम । सरि = सादृश्य = माम्य । हिश्रा = हृदय = हिया । तरक्कि = तडक कर ॥ -