पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११.] सुधाकर-चन्द्रिका। १८७ धुनते हैं ले कर स्वात्यर्क तक 'पौ कहाँ, पौ कहाँ' ऐमा बोला करता है। फिर मौन हो कर कहीं अन्यत्र चला जाता है, वा रूपान्तर से यहीं रहता हो। क्योंकि खात्यर्क के अनन्तर फिर वह यदि पकड कर पिँजडे में बन्द न किया जाय, तो वाटिकाओं में कहीं भी देख नहीं पड़ता। कोकिला = कोयल एक पति-विशेष, यह भी दूस प्रान्त में बहुत प्रसिद्ध पक्षी है। दूस की बोली में 'कुहू कुह ' ऐसा अनुकरण जान पडता है। यह भी वमन्त से ले कर वर्षा-ऋतु तक दूस प्रान्त में बोलता हुश्रा, इधर उधर दिखाई देता है। फिर यदि पकड कर न रकवा जाय तो नहीं देख पडता। बौन -वीणा = सरस्वती का प्रसिद्ध बाजा । बंसि = वंशी, एक प्रसिद्ध वाद्य-विशेष । पेम-मधु = प्रेम-मधु = प्रेम का मद्य-विशेष। माति मत्त हो कर। घूवि = घर्मित हो कर = घुमरौ खा कर। डोखा = डोला करता है = फिरा करता है। चतुर = चत्वारः = चारो। रिग = ऋग् । जजु= यजुष् यजुर्वेद। मार्च = माम। अथरबन = अथर्वण वेद। चउ-गुना = चतुर्गुण चार-गुणा। दूँदर = दून्द्र = देव-राज । बरम्हा = ब्रह्मा । मिर = शिर। धुना = = पौटते हैं। अमर = अमरकोश, अमर सिंह का बनाया प्रसिद्ध संस्कृत का कोश- ग्रन्थ जो अग्नि-पुराण में भी पाया जाता है। पिंगल = पिङ्गल, पिङ्गल नाग का बनाया प्राकृत भाषा में प्रसिद्ध छन्दो-र -ग्रन्थ । भारथ =भारत, व्यास का बनाया प्रसिद्ध संस्कृत का इतिहास-ग्रन्थ। गौता = भगवद्गीता = भारत के भोग्न-पर्व का एक खण्ड, जिस में कृष्णार्जुन संवाद है, और जो अनेक टीका टिप्पणादि से सर्वत्र बहुत-ही प्रसिद्ध है। भावमती - भाखती, शतानन्द का बनाया प्रसिद्ध ज्योतिष का एक करण-ग्रन्थ (मेरो बनाई गणक- तरङ्गिणी देखो)। व्याकरन = व्याकरण, जिम के इन्द्र । चन्द्र। कश्यप। पिशलि । शाकटायन । पाणिनि। अमरसिंह । जिनेन्द्र। ये आठ प्राचार्य हैं। उन में अब केवल पाणिनि का व्याकरण अष्टाध्यायी सर्वत्र प्रसिद्ध है। सब = इतर वेदाङ्ग = ज्यौतिष, निरुक्त, कल्प, शिक्षा। पिँगल = पिङ्गल = इतर छन्दो-ग्रन्थ वृत्तरत्नाकरादि। पाठ = धर्म-शास्त्र, मीमांसा और न्याय । पुरान = पुराण ॥ शुक कहता है, कि (अब ) रसना को कहता हूँ, अर्थात् पद्मावती के रसना का वर्णन करता है, जो कि (सदा) रस-हो की बात कहती है। (दूस लिये रस से भरी उस) अमृत-वचन को सुनते-हौ ( सब का) मन रक्त हो जाता है, अर्थात् उस वचन-हो में सब का मन लग जाता है, और यही चाहता है, कि सदा इस वचन को सुना करें ॥ वह (सो) रसना चातक और कोकिला के स्वर को हरण करती है, अर्थात् उस पाद्य-ग्रन्थ