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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३३८

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२४८ पदुमावति । १२ । जोगौ-खंड । [१३१ =कडा- . भरते हो। खेहा = धूर (खस्य श्राकाशस्य ईहा इच्छा यस्य) । भोगू = भोग । कइसद् = कथम् = कैसे । नौंद = निद्रा । परिहि पडेगी। भुइँ = भुवि, यहाँ भू। माँहा = मध्ये = में। अोढब = श्रोढियेगा = अवधारण करियेगा। काँथरि = कथरी= गुदरौ। कंथा चोलना। पाउँ= पाव =पैर । चलब = चलियेगा। पंथा पन्थाः= राह। महब सहि- येगा। खनहि खन = क्षण क्षण । भूखा = बुभुक्षा = भूख । खाब = खाइयेगा। कुरुकुटा

कर्करः कंकड पत्थर से भरा =खर कतवार मिला । रूखा=रूच ॥ दर

स्थान, वा दर =दल = सेना = फौज। परिगह = परिग्रहः आश्रित-जन प्रजा-लोग प्रमदानां सहस्राणि तव राजन् परिग्रहे' (वाल्मीकि-रा०, अरण्यका०, २८ स०, श्लो ३०)। उजिार उज्ज्वल । बठि = उपविश्य = बैठ कर। मानहु =मानिये। कदू = कृत्वा = कर के। चलहु = चलिये। अधिभार = अन्धकार = अंधेरा ॥ (राजा) रत्न-सेन को माता विनय करती है, (कि बेटा, तुमारे) माथे के ऊपर नित्य छाता ( लगा रहता है, और ) पैर के नीचे पाट ( सिंहासन ) ॥ (मो) नव लाख लक्ष्मी (के मदृश) प्रियाओं (भार्याओं) के साथ विलास करो, अर्थात् रनिवास में एक से एक लाखाँ सुन्दरी रानियाँ हैं, जिस से जी रमे, उस से सुख विलास करो। एक पद्मावती के लिये यह क्या सवाँग बनाते हो। (सो बेटा, मेरा कहा मानो,) राज्य छोड कर भिखारी मत बनो॥ (हा,) जिस देह में नित्य चन्दन लगता (रहा) है, सो (उस) देह (तनु =तन ) को देख (देख ) कर (जिस में कोई अवयव विना भस्म के बाकी न रहे) अब (उस में ) भस्म (खेह) भरते हो, अर्थात् उस चन्दन-योग्य देह के ऊपर भस्म चढाते हो॥ तुम (तो) सब दिन (सुख ) भोग करते रहे हो, सो (अब ) कैसे तप ( और ) योग को माधियेगा॥ कैसे ( योग साधने के लिये) छाया के विना धूप (सूर्य की दौप्ति = घाम ) महियेगा। कैसे (श्राप को) भूमि में नौंद पडेगौ ॥ कैसे (दूस कोमल अङ्ग के ऊपर ) कथरी और कंथा को श्रोढियेगा। कैसे श्राप ( तुन्ह ) पैरों से, अर्थात् पैदल, राह में चलियेगा ॥ (जो श्राप यहाँ क्षण क्षण पर मेवा मिठाई इत्यादि कुछ न कुछ खाते-ही रहते थे, मो) कैसे क्षण क्षण पर (अब उस ) भूख को महियेगा। ( समय कु-समय पर जहाँ कहौँ जो कुछ) सूखा रूखा खर कतवार से भरा (अन्न दैव-संयोग से मिल जायगा, उसे मेवा पक्वान्न के जेवने-वाले श्राप) कैसे खाइयेगा। माता का कहना है, कि बेटा, योग साधने में ऊपर कहे हुए कष्ट-हो कष्ट है, मो श्राप से योग नहीं मधेगा, आप राज्य छोड कर योगी न बनिये ; यही मेरी बिनती है। =