पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३८२

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२७६ पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१४० चउपाई। तत-खन बोला सुश्रा सरेखा। अगुवा सोई पंथ जेड देखा ॥ सो का उडइ न जेहि तन पाँखू। लेइ सा पलासहि बोडइ साखू ॥ जस अंधा अंधड कर संगी। पंथ न पाउ होइ सह-लंगी॥ सुनु मति काज चहसि जउ साजा। बीजा-नगर बिजइ-गिरिराजा ॥ पूँछहु जहाँ गाँड अउ कोला। तजु बाएँ अँधिभार खटोला ॥ दक्खिन दहिनइ रहहिँ तिलंगा। उत्तर माँझहि करहकटंगा ॥ माँझ रतनपुर सौह-दुआरा। झारखंड देइ बाउँ पहारा ॥ दोहा। आगइ बाउँ उडइसा बाएँ देहु सो बाट । दहिनाबरत देइ कइ उतरु समुद के घाट ॥ १४ ॥ इति जोगी-खंड ॥ १२॥ पन्थाः पंखा। तत-खन = तत्क्षणे = उमो बेला में । बोला = बोल (भलते, भल परिभाषणहिंसा- दानेषु भ्वा. वा वदति, वद व्यक्तायां वाचि वा.) का भूत-काल । सुश्रा = शुक। मरेखा = सु-लेख = श्रेष्ठ । अगुवा = अगुक वा अग्रग = आगे चलने-वाला । माई = मोऽपि =म एव = वही। पंथ मार्ग। जेदू = येन = जिस ने। देखा = देख (दृश्यते ) का भूत-काल । का = क्व = किम् = क्या। उडदू = उडे = उडद् (उड्डीयते) का लिङ् लकार में प्रथम-पुरुष का एक-वचन । तन = तनु = शरीर । पाँख = पक्ष पलामहि = पलाम को (पलाशम् = पत्र = पत्ता) = पत्ते को। बोडद् = बोरद् (बोडयति) बोरता है = बुडाता है = डुबाता = शाखा = डार। अंधा = अन्ध। अंध = अन्धे। मंगी = मङ्गो = साथी। पाउ = पावे पाव (प्राप्नोति) का लिङ् लकार में प्रथम-पुरुष का एक-वचन। होदू भवति होता है। सह-लंगीसह-लग्न = माथ-लगा, वा सह-लंगी = सह-लङ्घौ = साथ साथ लाँघने-वाला। सुनु = श्टणु = सुनो। काज = कार्य । चहसि = ( चतमि वा चदसि वा चहसि ) चहद् का मध्यम-पुरुष में एक-वचन । माजा = मन्जित करना = पूरा करना। बीजा-नगर = विजय-नगर। बिजदू-गिरि -विजय-गिरि = विजय-नगर का पहाड । गाँड = एक जङ्गली मनुष्य-जाति = कहारों का एक भेद = गोण्डः माखू