पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३९६

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२९० पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड । [१४३ ॥ का लोट् लकार में मध्यम-पुरुष का बहु-वचन ॥ खार = क्षार = खारा। खौर = चौर = दुग्ध = दूध । जल-उदधि = जल का समुद्र। सुर = सुरा = मद्य । किलकिला = 'किल- किला' ऐसा जल के लहरों से घोर शब्द करने-वाला समुद्र। अकूत = अकूतः = जिस को कूत न मकै कि, इतना है, अर्थात् जो असंख्य रत्नों से परिपूरित हो, इस का नाम कवि ने १६ १ दोहे में 'मान-सर' कहा है। नाँघद् = लाँघद् = लवयेत् = नाँघे = लाँघे। बत=भूति = पराक्रम ।। गज-पति ने कहा, कि (आप को यह ) याचना, (कि मुझे बोहित मिलें, जिन से सेना समेत, समुद्र पार हो कर, सिंहल-दीप को जाऊं) मेरे सिर पर है, अर्थात् आप को प्राज्ञा शिरो-धार्य है। इतने वचन में त्रुटि (कमर) न होगी, अर्थात् आप के इस वचन को मैं अवश्य ही पूरा करूँगा ॥ ये सब (जहाजों ) को (मैं ) नये गढे हुए देऊँ, अर्थात् जो जहाज नये-गढे हुए हैं, जिन से अाज तक अभौं काम नहीं लिये गये हैं, उन सब को ला कर आप के लिये मैं दे सकता हूँ; (क्योंकि ) जो फूल महेश (महादेव) को चढे, वहौ फूल फूल है, अर्थात् महादेव के शिर पर चढने-हौ से फूल का नाम फूल पडा है, नहीं तो वे किस काम के। दसौ प्रकार आप ऐसे महानुभावों को उचित सेवा करने हौ से मैं गज-पति कहलाता हूँ, नहीं तो मैं दक्षिण का रहने वाला किस गिनती मैं। इस लिये जैसे चुन चुन प्रसून ईशान के पूजन के लिये लोग रखते हैं इसी प्रकार मैं भी चुन चुन कर, अति नूतन-हौ बोहितों को श्राप सेवा में समर्पण करूंगा ॥ परन्तु गो-खामौ से, अर्थात् श्राप योगि-राज से, एक विनती है, कि (सिंहल की) राह कठिन है, (आप) किस प्रकार से जाइयेगा, अर्थात् श्राप के जाने योग्य सिंहल की राह नहीं है ॥ (क्योंकि उस राह में) असूझ और अपार मात समुद्र हैं, (जिन में) मगर, मच्छ और घरियार (प्राणियों को मार डालते हैं । (उन सातो में ऐसी) लहर उठती जो संभारी नहीं जाती हैं, अर्थात् उन के धक्कों से बडे बडे जहाज नहीं सँभर सकते, मनुष्यों को क्या गिनती है। भाग्यों से (हजारों में) कोई (एकाध) बैपारौ निबह जाता है, अर्थात् उन सातों के पार हो जाता है॥ (सो) श्राप, हे राजा, अपने घर के (मदा के) सुखिया हो, किस काम के लिये इतना जोखिम सहते हो, अर्थात् काहे जौ के ऊपर खेलते हो ॥ (राजन्, निश्चय जानिये ) वह कोई (विरला) सिंहल-द्वीप को जाता है, जो कि अपने जीव को हाथ में लिये हो, अर्थात् जो अपने जीव को, के उत्तम