पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड । [१४५ चउपाई। पेम-समुदर अइस अउगाहा। जहाँ न वार न पार न थाहा ॥ जउ वह समुद गाह प्रहि परे । जउ अउगाह हंस हिअ तरे॥ हउँ पदुमावति कर भिख-मंगा। दिसिटि न आउ समुद अउ गंगा ॥ जेहि कारन गिउ काँथरि-कंथा। जहाँ सो मिलइ जाउँ तेहि पंथा ॥ अब प्रहि समुद परउँ होइ मरा । पेम मोर पानी का करा॥ मर होइ बहा कतहुँ लेइ जाऊ । ओहि के पंथ कोउ धरि खाऊ ॥ अस मन जानि समुद मँह परऊँ। जउ कोइ खाइ बेगि निसतरऊँ ॥ दोहा। अवगाढ थाहा जो अथाह =अगाध । सरग सौस धर धरती हिआ सो पेम-समुंद । नयन कउडिया होइ रहे लेइ लेइ उठहिँ सो बुंद ॥ १४५ ॥ पेम-समुदर = प्रेम-समुद्र = प्रेम का समुद्र। अस = एतादृश = ऐसा। अउगाहा = कठिन। वार = जिधर खडे हो उधर का तट। पार = दूसरौ श्रोर का तट। तल = थाह । जउ = यदि। समुद = समुद्र । गाह = गाध = थाह = न हो = जिसे थहा सकते हैं। अउगाह = अतल-स्प= जिम के तल का पता न लगे = जिम की गहराई का पता न लगे। हम = एक पति-विशेष, यहाँ प्राण । हित्र = हृदय । तरे = तरदू (तरति ) का भूत-काल में बहु-वचन । पदमावतिः पद्मावती। भिख-मंगा= भिक्षुक = भिखारी= भौख माँगने-वाला। दिमिटि = दृष्टि = नेत्र = आँख। गंगा गङ्गा, प्रसिद्ध पवित्र नदी। = सबब = हेतु। गिउ =ग्रौवा = गला। काँथरि = कथरौ =गुदरी। कंथा कन्था = गुदरी का चोलना। मिल = मिले = मिल (मिलति ) का लिङ् लकार में प्रथम-पुरुष का एक-वचन । = मर = मृतक = मुर्दा। पेम = प्रेम। पानी = पानीय = जल । करा=कला = अंश बहदू (वहति) का भूत-काल । कतहुँ कुत्र हि = कुत्रापि= कहौं। धरि= कृत्वा = धर कर = पकड कर । खाऊ = खाउ = खावे = खाद (खादति) का लिङ् का प्रथम-पुरुष में एक-वचन। जानि = ज्ञात्वा = जान कर। परऊँ = परदू ( पतति ) का लोट में उत्तम-पुरुष का एक-वचन, यहाँ परऊ = पर= पडता है। कारन = कारण मरा
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