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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४२४

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३९८ पदुमावति । १५ । सात-समुदर-खंड । [१५२ अथ सात-ममुटा-खंड ॥ १५ ॥ चउपाई। सायर तरइ हिअ. सत पूरा । जउ जिउ सत कायर पुनि सूरा ॥ तेहि सब बोहित पूर चलाए । जेहि सत पवन पंख जनु लाए ॥ सत साथी सा गुरु सहिवारू । सतह खेइ लेड लावइ पारू॥ सतइ ताकु सब अागू पाछू । जहँ जह मगर मच्छ अउ काछू ॥ उठइ लहरि जनु ठाढ पहारा। सरग अउ परइ पतारा ॥ डोलहिँ बोस्ति लहरइँ खाहौँ। खन तरकहिँ खन होहिं उपराहौँ ॥ राजइ सो सत हिरदइ बाँधा। जेहि सत टेकि करइ गिरि काँधा ॥ दोहा। खार समुद सो नाँघा आप समुद जहँ खौर । मिले वेइ सात-उ बेहर बेहर नौर ॥ १५२ ॥ क्षारसमुद्र । तर = (तरति) तरता है। हिअ = हृदय । सत = मत्य । पूरा = पूर्ण =रा। कायर = कातर = कादर = डरपोक । पुनि = पुनः = फिर। सूरा शुर = बहादुर = मई। चलाए = चल (चलति) का णिजन्त, भूत-काल में बड़-वचन । पतवायु = हवा। पंख लगदू (लगति) का णिजन्त, भूत-काल में बहु-वचन। माथी = सार्थों = सङ्गौ । महिवारू = सहपाल = साथ में क- सहायक-वर = श्रेष्ठ-सहायक = अच्छी तरह से मायर=सागर पूर = पूर्ण। = पचपर। लाए=लगाए-