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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४२६

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३२० पदुमावति । १५ । सात-समुदर-खंड । [ १५२ - १५३ सत्य-हौ सर्वत्र, आगे पीछे जहाँ जहाँ मगर, मच्छ, और कछुए रहते हैं, (रक्षा के लिये ) ताका करता है, अर्थात् प्राणी का सत्य-ही सब हिंसक जन्तु से बचाने के लिये उस का पहरा दिया करता है ॥ ( जिस समय जहाज वेग से चले उस समय समुद्र में ऐसौ) लहर उठने लगी जानाँ (लहर नहीं) पहाड खडे हैं। लहर वर्ग तक चढ कर, अर्थात् आकाश में बहुत ऊँचे तक जा कर, फिर (ऐसे झाँक से नीचे की ओर अाती है, कि) पाताल में पड़ती है, अर्थात् पाताल के नीचे तक चली जाती है । ( उस समय) जहाज (इधर उधर ) डोलने लगते हैं (और) लहरें खाने लगते हैं, अर्थात् लहरों के सङ्ग जहाज भी नीचे ऊँचे श्राया जाया करते हैं, क्षण में नीचे और क्षण में ऊपर होते हैं, वा ( लहरों के श्राघात से ) क्षण में तडकते हैं, अर्थात् तड तड शब्द करते हैं, और फिर ऊपर की ओर तड तडा कर पाते हैं ॥ (कवि कहता है, कि ) वह (सो) राजा (रत्न-सेन ) सत्य को हृदय में बाँधा है, अर्थात् हृदय में दृढ सत्य-सङ्कल्प किया है, कि अवश्य-हौ सिंहल को जाऊँगा। (सो) जिम को सत्य है ( उस को वही सत्य ) टेक कर, अर्थात् संभार कर (उस के ) कंधे पर पहाड को करता है, अर्थात् उस के कंधे पर पहाड धर देता है, और वह सत्य के आधार से उस पहाड (प्रेम-पहाड) को सुखेन उठा लेता है ॥ मो राजा (अपने सत्य-सङ्कल्प से ) खार समुद्र को लांघ गया, अर्थात् खार समुद्र के पार हो गया, (और) चौर-समुद्र जहाँ है तहाँ (लोग) श्राये। (कवि कहता है, कि देखने में ) वे सातो समुद्र मिले हैं (किन्तु उन के) जल भिन्न भिन्न हैं, अर्थात् जल के भिन्न भिन्न श्राकार और भिन्न भिन्न स्वादु से वे सातो भिन्न भिन्न नाम से पुकारे जाते हैं; नहीं तो वस्तुतः वे सातो मिले हुए हैं। सातो के मिलाने से कवि ने यह देखलाया, कि उन्ही जहाजों पर विना उतरे लोग चले जाते हैं। परन्तु पुराणों में दो दो समुद्रों के बीच बीच में एक एक द्वीप लिखा है, इस लिये मलिक महम्मद की यह कल्पना भारतवर्षीय विद्वानों के मत से विरुद्ध है। कदाचित् किसी मुसल्मानौ ग्रन्थ में यह कल्पना हो तो आश्चर्य नहीं ॥ १ ५२ ॥ - चउपाई। खोर-समुद का बरनउँ नौरू। सेत सरूप पित्रत जस खोरू। उलथहि मानिक मोती होरा। दरब देखि मन होइ न थौरा।