सुधाकर-चन्द्रिका। ३४८ जोगा = योग। भरथरी भर्तृहरि = राजा विक्रम का छोटा भाई ( १३ ४ ३ दोहे की टीका देखो)। पूज= पूजा पूजद् (पूर्यते) का भूत-काल में एक-वचन । बिश्रोगाः वियोग = विरकता। गोरख = गोरक्ष-नाथ अवधूत जो मछंदर के प्रधान शिय्य थे ( १२८ ३ दोहे को टौका देखो)। हाथू = हाथ = हस्त । तारौ = तार (तारयति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । वा, तारी= ताली = कुञ्जी = चाभी। गुरू = गुरु = आचार्य । मछंदर-नाधू = मछंदर-नाथ = मत्स्येन्द्र-नाथ = गोरख के गुरु । पेम = प्रेम । पुहुमि = पृथिवी = भूमि। अकासू = आकाश = आसमान। दिमिटि = दृष्टि। परा = परदू (पतति ) का भूत-काल में एक-वचन । सिंघल = सिंहल-द्वीप । कबिलासू= कैलास महादेव के रहने का स्थान = शिव-लोक । गढ = गाढ = दुर्ग = किला। लाग = लगदू (लगति) का भूत-काल में एक-वचन । कासा = आकाश । बिजुरौ = विद्युत् = बिजली। कनइ = कणौ = कणिका = कनौ वज्र की। कोट = गढ । चहुँ = चारो। पासा पार्श्व। मसि शशि चन्द्र। कचपचि= कचपची = कृत्तिका नक्षत्र । भरा= भरदू (भरति) का भूत-काल में एक-वचन । राज-मंदिर = राज-मन्दिर राजा का घर । सोन = स्वर्ण = सुवर्ण = सोना । नग = अमूल्य रत्नों के टुकडे । जरा = जटित। नखत = नक्षत्र । कहेसि = कहा = कहदू (कथयति) का भूत-काल में एक-वचन। रानिन्ह = रानी बहु-वचन, (रानी =राज्ञी राज-महिषी)। श्राहि = अस्ति = है। अबासा = त्रावास निवाम-स्थान = रहने की जगह ॥ आकाश। सरोबर = सरोवर = अच्छा तडाग = पोखरा। कवल = कमल। कुमुद = कोई। तराई = तारायें = तारा-गण । ऊपा = उअदू (उदयति) का भूत-काल में एक-वचन । भवर = भ्रमर = भौरा। पवन = वायु। मिला = मिलदू (मिलति) का भूत-काल मैं एक-वचन । लेदू = ले कर । बास = वाम= सुगन्ध ॥ (शुक ने कहा, कि) राजा, दूँ जैसा आदि विक्रम, अर्थात् विक्रमादित्य था, तैमा-ही है। भारत वर्ष में प्राचीन परम्परा से बडी बडी राज-धानियों में यह रीति श्राज तक चली आती है, कि दो चार पीढी के बाद फिर फिर राजाओं के वे-हो नाम रकवे जाते हैं, जैसे जय पुर में राम-सिंह, माधव-सिंह, जय-सिंह, मान-सिंह ये-हौ चार नाम राजाओं के फिर फिर होते हैं। कवि ने सब से पहला अतिशय प्रतापी विक्रम के बोध होने के लिये 'श्रादि' शब्द का उपादान किया है। दूं सत्य-भाषी हरिश्चन्द्र (और) राजा पृथु (वैन्य ) है, अर्थात् उन्हीं के ऐसा सत्य-भाषी जडा का गगन =
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