सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६४] सुधाकर-चन्द्रिका। ३५८ नहीं पहुंचती है, अर्थात् यह विवेक नहीं कर सकती, कि कितना ऊँचा है ॥ (उस गढ) के चारो ओर बिजुली के चक्र (रक्षा के लिये) फिरा करते हैं। और यम-राज के दोहरे अस्त्र फिरा करते हैं, वा (रक्षा के लिये) यम-कर्तरी फिरौ करती है ॥ जो (मनुष्य ) मन में श्रद्धा कर, दौड कर, (वहाँ ) गया ; (जाते-हौ उसे) चक्र (बिजुरी-चक्र ) ने ऐमा मारा कि दो टुकडा हुअा, अर्थात् चक्र ऐसा उसे मार देता है, कि (वह) दो टुकडा हो जाता है ॥ चन्द्र, सूर्य, और नक्षत्र, तारा, सब तिसौ (गढ के रक्षकों के ) डर से ( रात दिन) अन्तरिक्ष में फिरा करते हैं, अर्थात् घमा करते हैं ॥ तहाँ ( गढ तक) वायु जा कर, ( गढ-पति के पास) पहुँचना चाहा, (परन्तु जाते-हो बिजुरी-चक्र-यमकास्त्रों ने) तैसा मारा, कि टूट (टूट) कर, अर्थात् छिन्न भिन्न हो कर, पृथ्वी में बहने लगा, अर्थात् अङ्ग-भङ्ग हो जाने से असमर्थ हो कर, पृथ्वी में दूधर उधर डोलने लगा ॥ (उस स्थान में पहुंचने के लिये प्रज्वलित और उच्च शिखा से) श्राग उठी, (परन्तु) निदान (अन्त ) में, वा विना (गुरु ) सहायक के जर कर, बुझ गई (वहाँ तक न पहुँच सकी) । (दूस पर बाप को कसर निकालने के लिये उस अग्नि का पुत्त्र ) धूआँ (पहुँचने के लिये) उठा। ( परन्तु वह भौ) उठ कर बीच-ही में बिलाय गया ( पता भी न लगा, कि क्या हो गया)। तहाँ (जाने के लिये मेघ-व्याज से) पानी उठा, (और) जा कर (भी उस गढ-पति को) न कूत्रा, अर्थात् न छू सका । (इस लिये वहाँ से ) रो कर फिरा, (और) भूमि चू पडा, (बौरहा हो, नारौ नारों में घूमने लगा; उच्च स्थान की लालसा मन से बिमार नौच-स्थान-ही में फिरने लगा)। यह सब कवि को उत्प्रेक्षा है रावण शपथ कर (उस पद्मावती-प्रकृति-रूपा मौता के गढ, अर्थात् देह को) चाहा, (कि उस के साथ सुख विलास करें। सो दूस इच्छापराध-ही के कारण उस के) दशो माथ उतर गये, अर्थात् उस के दशो शिर काटे गये। महादेव जी [जब राम और लक्ष्मण वन में सौता को ढूँढते थे तब उस पद्मावती-प्रकृति-रूप, चिच्छक्ति विशिष्ट मौता के गढ (देह) को स्मरण कर] पृथ्वी में (अपने) ललाट को धर दिया, अर्थात् उस को सब से परे श्राद्या शक्ति का गढ समझ कर, दूर-हौ से दण्डवत किया। रामायण में प्रसिद्ध कथा है, कि जब जानकी-हरण के अनन्तर वन में जानकी को ढूंढते राम जौ चले हैं, तहाँ मार्ग में सतौ-सहित महादेव से भेंट हुई है। महादेव जो ने राम जी को बड़ा समझ, प्रणाम किया। इस पर कवि को उत्प्रेक्षा है, कि 11