पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४९०

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३८४ पदुमावति । १८ । वियोग-खंड । [१७४ जोबन-तुरौ हाथ गहि लीजि। जहाँ जाइ तहँ जान न दौजिअ ॥ जोबन जोर मात गज अहई। गहहु ग्यान आँकुस जिमि रहई ॥ अबहिँ बारि तुइँ पेम न खेला। का जानसि कस होइ दुहेला ॥ गगन दिसिटि करु नाइ तराहौँ। सुरुज देखु कर आवइ नाहौं । दोहा। मयान 1 जब लगि पौउ मिलइ तोही साधु पेम कई पौर। जइस सौप सेवाती कहँ तपइ समुद मँझ नौर ॥ १७४ ॥ पदुमावति = पद्मावती । तूं = त्वम् । समुद = समुद्र। सयानी = सयान का स्त्रीलिङ्ग, मज्ञान = ज्ञान से भरा । सरि = सदृश = बराबरी। पूजद् = पूर्यते = पूरा पडता। रानी राज्ञी। समाहि = समाद का बहु-वचन, समाइ = समाति धमता है वा धमती है। मह = मध्ये = बीच । श्राई = एत्य = श्रा कर । डोलि = श्रादोल्य = डोल कर = दूधर उधर चल कर । कई = कथय = कहो । कहाँ क्व ह = कुत्र । अब-हौँ = अधुना = अभौँ । कवल-करौ= कमल-कली। हिअ = हृदय। श्रदहदू = श्रायास्यति = श्रावेगा। भवर- भ्रमर । जा=जो= यः । तो= तव । कहँ = को। जोरा = जोडा = योग्य। तुरी= त्वरौ घोडा। हाथ = हस्त । गहि = ग्रहणम् । लौजिअ = लीजिए (ला उपादाने से बना है)। जहाँ यत्र । जादू = जावे ( या प्रापणे का लिङ् का एक-वचन )। तह = तत्र । जान = जाने यानम् । दौजिअ = दीजिए (दा दाने से बना है)। जोर = वली। मात = मत्त हाथौ। अहई = अस्ति = है। गहरू ग्टहाण = पकडो। ग्यान = ज्ञान । आँकुम = अङ्कुश । जिमि = यथा = जैसे = जिस में। रहई = रहे (रह त्यागे का लिङ के प्रथम पुरुष के एक वचन का रूप)। बारि= वाले = हे बेटौ। तुर्दू = त्वम् = । पेम = प्रेम । खेला = खेल का भूत, मध्यम-पुरुष का एक-वचन । जानसि जानामि जानती है। कस = कथम् = कैसा। हो = होवे (भवेत् ) । दुहेला दुहेला = बुरौ खेल गगन = आकाश = आसमान । दिमिटि = दृष्टि। करु = कुरु = करो। नादू = अवनमय्य = मका कर = नवा कर । तराही = तल = नौचे । सुरुज = सूर्य । देखु = देख = पग्य (दृशि प्रेक्षणे से बना है)। कर = हाथ । श्रावद =' श्रायाति = आता है।

मस्त। गज