पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४९४

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३८८ पदुमावति । १० । वियोग-खंड । [१७६ दोहा। नयन = सत =सत्य- । तुम्ह पुनि जाहु बसंत लेइ पूजि मनावहु देउ । जौउ पाइ जग जनम कइ पौउ पाइ कइ सेउ ॥ १७६ ॥ आँख। चाक = चक्र = कोहार का चाक । चहुँ = चारो = चत्वारि । ओर = अपर, वा अवार = तरफ । चरचर् = चर्चयति उपाय करती है = दुलारती है। समाइ = समाती है = समाति । कोरा = क्रोड। कहसि = कहा (कथ व्यक्तायां वाचि से बना है)। पेम = प्रेम। जउ = यदि = जौं। उपना = उत्पन्न हुआ। बारौ= बालिका=बाला = बेटी। बाँधड़ = बाँधदू का मध्यम-पुरुष में लोट् लकार का एक-वचन । सत् धर्म । डोल = डोले = चले (दोल्ट सञ्चलने से)। भारौ= भार जिस में हो। जिउ जौव। मह = मध्य । पहारू = प्रहार = पहाड । परदू = पडे (प्र उपमर्ग- पूर्वक पतृपतने से)। बाँकदू = बाँके = वक्र हो = टेढा हो। बारू = बाल । सती= पतिव्रता स्त्री ममौ चौना । जरदु = जजती है (ज्वलति)। पित्र = प्रिय = पति। लागी = लग्न हो कर = लिये। हिश्र = हृदय । तउ = तर्हि = तदा तो। सौतल = शीतल = टंढी। श्रागौ अग्नि = श्राग। जोबन = यौवन = जवानौ। चाँद = चन्द्र । चउदस-करा = चतुर्दश-कला। बिरह = विरह = वियोग जुदाई । चिनगि चित्कण = स्फुलिङ्ग = चिनगौ। जरा = जलता है (ज्वल दीप्तौ से बना)। पवन-बंध = पवन बाँधनेवाला = हवा रोकनेवाला । जोगी = योगी। जती = यति । काम-बंध = काम रोकनेवाला। कामिनि= कामिनी काम की इच्छा करनेवाली स्त्री। श्राउ = श्रायाति = पाता है। बसंत = वसन्त-ऋतु । फूल = फूलती है (फुल्लति)। फुलवारी = पुष्य-वाटिका। देवी-बार = देव-द्वार । सब = सर्व । जहहिँ = जहदू ( यास्यति) का बहु-वचन । बारी= वालिका = लडकियाँ । = तुम = त्वम्। पुनि = पुनः = फिर । जा=जात्रो (याहि ) । लेद् = लेकर (णो प्रापणे से नौत्वा ) । पूजि = आपूज्य - पूज कर । मनाव = मनाओ (मानयतु ) का बहु-वचन । देउ = देव = देवता । जीउ = जीव । पाद प्राप्य =पा कर। जग- संसार । जनम = जन्म । पौउ = प्रिय = पति । सेउ = सेवा । (पद्मावती को) जो आँखें हैं (मो) चारो ओर फिरने लगौं; धाई उपाय करतो है (बहुत दुलारती और धीरज देती है और गोद में लेती है पर पद्मावती) गोद में समाती नहौं (गिरी पडती है) ॥ धाई ने कहा, कि बेटौ यदि (पति का) प्रेम 1 जगत् = ..