पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५३४

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४२८ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१६६ प्रवेश । = पदुमावति = पद्मावती। गदू = गई = अगात्। देवी = देव। दुधारू = द्वार। भीतर अभ्यन्तर । मँडफ = मण्डप । कीन्ह = करद (करोति) का भूत-काल । पसारू देओहि = देव को। माँसउ =संशय। भा= हुना= भया (बभूव)। जिउ जीव । भागउँ =भागें । दिसि = दिशा । घेरा = ग्टहीत । जोहार =जीव-हार = प्रणाम । दूजा = द्वितीय। तिमरद = तीसरे = हतीय। श्राद् = एत्य =ाकर। चढाई = चढावद (उच्चालयति) का भूत-काल । फर = फल । भरावा = भरावद (म भरण से णिजन्त) का भूत-काल । चंदन = चन्दन = एक सुगन्ध काष्ठ । अगर = = एक सुगन्ध काष्ठ। अन्ह वावडू (अन्हा स्वाति से णिजन्त) का भूत-काल । भरि = भृत्वा = भर कर। सेंदुर = सिन्दूर = एक प्रकार का अङ्गराग । भागद् = श्रागे = अग्रे = सामने । भदू = भई (बभूव) भया का स्त्रीलिङ्ग। खरी= खडा का स्त्रीलिङ्ग। परमि श्रास्पृश्य छू कर। पुनि पुनः = फिर । पान्ह = पायन्ह = पाय का बहु-वचन ; पाय = पाद पैर। परी= परदू (पतति) का भूत-काल । अउरु = अपर। सहेलो = महाली = साथ की मखियाँ । सबदू = सभी। बिशाही = व्याही गई = विवाहिता हुई। मो कह = मुझ को। कतहुँ = कुत्रापि = कहौँ भी। हउ = हूँ = अस्मि । निरगुन = निर्गुण गुण-रहित । जेदू = जिस से = येन । गुन गुण । दाता= देने-वाले ॥ सँजोग = संयोग । मिरवड = मिलावो (मिल-मङ्गमे से)। कलम = घट = घडा । जात = जाती है। मानि श्रामान्य = मान कर। होछा = हि-दूच्छा = निश्चय से मनोरथ । पूजद् = पूजे (पूर्यंत )। बेगि = वेग = शौन। चढावउँ = चढाऊँ। श्रानि थानीय = आन कर =ला कर ॥ पद्मावती देव-द्वार में गई और मण्डप के भीतर प्रवेश को ॥ देवता को जौव का संशय हो गया, अर्थात् देवता पद्मावती के तेज से डर गया कि अब जो निकलने चाहता है; (मोचने लगा कि) मण्डप चारो ओर से घिरा हुआ है, किस दिशा से भागूं ॥ ( पद्मावती ने) एक वार प्रणाम किया और दूसरौ वार भी (बडे विनय से) प्रणाम किया ; फिर तीसरी वार प्रणाम कर भौतर श्रा कर पूजा चढाई ॥ फल फूलों से सब मण्डप को भरवा दिया और चन्दन और अगर से देवता को स्नान करवाया ॥ सेंदुर से (देवता को) टोक कर (भर कर) सामने खडी हुई ; देवता को कू कर पैरों पर पडौ ॥ (कहने लगी कि) हे देव, और सब साथ की सखियाँ व्याह गई ( पर) मेरे लिये कहौं भी वर नहीं है, अर्थात् मेरे योग्य कहौँ भी वर नहीं ७