२०५] सुधाकर-चन्द्रिका। ४४९ .. । जो (पुरुष स्वस्थ हो कर) सोया था (उस के हृदय में) क्यों वे अक्षर लिखे गए ; क्या जाने वे अक्षर हौ विरह (दुःख ) को करते हैं, अर्थात् यदि अक्षर न लिखे होते तो राजा को विरह-दुःख न होता; अक्षरों हो के कारण राजा को ज्ञान हुआ, कि पद्मावती श्रा कर चली गई, दूस लिये विरह-दुःख का कारण अक्षर ही हैं। जैसे दुष्यन्त को शङ्कुतला ने, माधवानल को काम-कन्दला ने विरह-दुःख दिया । और जैसे दमयन्ती के वियोग से नल के अङ्ग को दशा हुई (वैसी ही राजा रत्न-सेन को दशा हुई); (राजा रत्न-सेन को) आँखों को बंद कर पद्मावती लोप हो गई । दुष्यन्त पुरुवंशियों में प्रधान पुरुष थे; इन से विश्वामित्र के वीर्य से मेनका अप्सरा से उत्पन्न शङ्कुतला का विवाह हुआ था। प्रत्यक्ष विवाह होने के पूर्व वन में कण्व के श्राश्रम में दुष्यन्त और शकुन्तला से प्रथम भेंट हुई थी और परस्पर वचनप्रमाण से एक प्रकार का विवाह हो गया था ; पीछे से गर्भवती शकुन्तला जब राजा के पास गई तब राजा को शकुन्तला के साथ वन में विवाह करना भूल गया इस लिये उस को भार्या न बनाया; दूस से वह बहुत व्याकुल हुई। पुत्त्री को ऐसी दशा देख मेनका उठा ले गई। फिर विवाह का होना स्मरण कर दुष्यन्त शकुन्तला के विरह से बहुत ही व्याकुल हुआ था; भारत श्रादिपर्व, अध्याय ६८-७४ में इस की सविस्तर कथा लिखी हुई है। पद्मपुराण में भी कुछ भिन्न प्रकार से इस की कथा है। कालिदास ने जो शाकुन्तल नाटक को बनाया है उस में प्रायः पद्मपुराण ही को बहुत कथा है। माधवानल एक ब्राह्मण था। कामकन्दला पर आसक्त हो गया था। उस के विरह से व्याकुल हो कर हा कामकन्दला, हा कामकन्दला, कहता इधर उधर बौरहा सा फिरा करता था। इस को मविस्तर कथा सिंहासन-बतौसी कौ २१ वौँ कहानी में है । राजा नल वौर-सेन के पुत्र थे; और दमयन्तौ विदर्भ-राज भीम-सेन की पुत्री थी; नल ने हंस से दमयन्ती की प्रशंसा सुन उस के विरह से बहुत ही व्याकुल हुआ था। इस को कथा भारत वनपर्व ५२-८८ अध्यायों में विस्तरपूर्वक है। इसी को छाया से श्रीहर्ष ने नैषध काव्य लिखा है ॥ (राजा रत्न-सेन विलप रहा है कि) वसन्त ( पद्मावती) श्रा कर फूलों के वेष में हो कर छिप रहा, अर्थात् वसन्त-रूप पद्मावती फूल हो कर राज-मन्दिर में चलो गई; सो भ्रमर हो कर (उसे) किस प्रकार से पाऊँ; कौन ऐसा वह गुरु है जो (इस विषय में) उपदेश, अर्थात् शिक्षा दे ॥ २० ५ ॥ .. 57
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