पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५५८

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४५२ पदुमावति । २१ । राजा-रतन-सेन-सती-खंड । [२०७ सुफल लागि मँझ धारा॥ पगु टेकउँ तोरा। सुश्रा क सेवरि तूं भा मोरा ॥ पाहन चढि जो चहइ भा पारा। सो अइसइ बूडइ पाहन सेवा कहा पसौजा। जरम न पलुहइ जउँ निति भौंजा ॥ बाउर सोइ जो पाहन पूजा । सकति क भार लेइ सिर दूजा ॥ काहे न पूजिअ सोइ निरासा। मुए जिअत मन जा करि अासा ॥ दोहा। सिंघ तरँदा जे. गहा पार भए तेहि साथ । ते पडू बूडे बारि हौ भैंड पूछि जिन्ह हाथ ॥ २०७॥ अरे = अरे = नीच सम्बोधन । मलेछ = म्लेच्छ। बिसुत्रासौ = विश्वाशी = विश्व (संसार) को खाने-वाला। कित कुतः = क्यों। मद् = मैं । श्राद् = श्रा कर = एत्य । कौन्ह = कर (करोति) का भूत-काल । तोरि = तोरी= तेरी। सेवा = टहल । आपुनि = अपनी । नाउ = नाव = नौका । चढदू = चढने । जो = यः । देई = देद (दत्ते) देता है। सो = सः = वह । तउ = तो= तर्हि । उतार = उतारता है (उत्तारयति)। खेई =खे कर (खेव सेवायाम्)। सु-फल = सुन्दर फल के लिये। लागि = लग कर = लिये। पगु = प्रग= पैर । टेकउँ = टेक (टङ्कति) का सम्भावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । सुश्रा शुक । क = का । सेवरि= शाल्मलि = सेमर; जिस के फल मैं रस नहीं रहता केवल रूई भरी रहती है। दूँ = त्वम् । भा = भया (बभूव) । पाहन = पाषाण = पत्थल । चढि = चढ कर । चहदू = चाहता है (इच्छति)। अदूस = ऐसे ही एतादृशो हि। बूडद् = बडता है = डूबता है (ब्रुड मज्जने, बुडति ) । मँझ = मध्य । कथम् कैसे। पसौजा = पसौजदू = पसौजे = प्रस्खेदित हो । पलुहद = पनफता है (पल्लवयति)। जउँ=जी = यदि । निति = नित्य । भौंजा अभ्यजित। बाउर = वातुल = बौरहा। सोइ = स एव = वहौ। पूजा पूज = पूजदू (पूज- यति)। सकति = शक्यते । क = क्व = कहाँ । भार = बोझा। लेदू = लेवे । सिर = शिर । दूजा = दूसरा द्वितीय। काहे न = किमु न = क्यों नहौं । पूजिअ = पूजिए (पूजयेः) पूजो। निरासा = निराशः = अशा से रहित = परमेश्वर । मुए = मरने पर। जित = नौते = जीवन् । जा करि = जिस की। श्रासा = श्राशा ॥ कहा- जरम= जन्म। -