पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५६०

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४५४ पदुमावति । २१ । राजा-रतन-सेन-सती-खंड । [२०८ 1 जैसे = यथा। हउँ तेहि दीप पतँग होइ परा। जिउ जम काढि सरग लेइ धरा ॥ बहुरि न जानउँ दहुँ का भई। दहुँ कबिलास कि कहँ अपसई ॥ दोहा। अब हउँ मरउँ निसासी हिअइन आवइ साँस । रोगिया को को चालइ बइदहि जहाँ उपास ॥२०८॥ देओ = देव । कहा कहदू (कथयति) का भूत-काल में प्रथम-पुरुष का एक-वचन । बउ बातुल = बौरहे। देाहि = देव को। अगुमन = आगमन आगे हो = पहले। मारा = = मार (मारयति) का भूत-काल का एक-वचन । गाजा = गर्जन = विद्युत् । पहिल+= पहले ही = प्रथम एव । सिर = शिर। परई = परदू (पतति)। का = क्या = किम् । काहु क = किसी का । धरहरि = धरहरिया = धर-धर = पकड कर रक्षा करना । करई = करे (कुर्यात् ) । कई = को। बारौ= वालिका = वाला = कन्या । श्रादू =श्रा कर ( एत्य )। मखिन्ह = सखी का बहु-वचन । सउँ= माँ = से। मँडफ = मण्डप । उघारौ= उघार (उहाटयति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । जस = चाँद = चन्द्र । गोहन = गोपन = संग। परउ= परद् (पतति) सम्भावना मैं, उत्तम-पुरुष, एक वचन । भुलाइ = भूल कर (भ्रान्त्वा)। देखि = देख कर = दृष्ट्वा । उँजिबारा: उचलता = उजेला। चमकदू = चमकता है (संस्कृत में लिट् के प्रथम-पुरुष का एक-वचन चकमे)। दसन = दशन = दाँत । बौजु = विद्युत् = बिजुरौ। कद् = की। नाई = निभ सदृश । नयन = नेत्र । चकर = चक्र = चक्कर । जमकात = यम-कर्तरी = एक प्रकार की प्राण लेने-वाली कैंची। भवाँर्दू = भवाँव (भ्रामयति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, प्रथम- पुरुष का बहु-वचन। हउ = हाँ = मैं । दीप =दीया = दीपक = चिराग। पतंग पतङ्ग = फतिंगा = कौट। हाद = हो कर (भूत्वा )। परा = परदू (पतति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, उत्तम-पुरुष का एक-वचन । जिउ =जीव । -यम-राज । काढि (श्राकृष्य)= खौंच कर निकाल कर । सरग = वर्ग। ले =श्रालाय। धरा धरद् (धरति) का भूत-काल, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । बहुरि =भूयः पुनः जानउँ: = जानदू (जानाति) का उत्तम-पुरुष, एक-वचन = जानता हूँ। दऊँ = दुहुँ = दोनों में से = किं वा । कबिलास कैलास। कि = अथवा = किं वा। कह = कहाँ = कुत्र । अपमई = अपमर (अपसरति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन ॥ जम यम= ले कर फिर । -