पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५७४

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४६८ पदुमावति | २२ । पारबती-महेस-खंड । [२१ - २१५ . .. बात है या भीतर और और बाहर कुछ और ही है। (यह विचार कर पार्वती) ऐसौ सुन्दरी हुई जानौँ अपारा हो गई और हँस कर राज-कुमार के अँचरे को पकड लिया । (कहने लगी कि ) कुर मुझ से एक बात सुनो; मेरी जैसी रंगत है ऐसौ रंगत और किसी में नहीं है। और ब्रह्मा ने तुझे भी सुन्दर रूप दिया है; (सो तुमारी सुन्दरता को) बात शिव लोक में जा कर उठी। तब इन्द्र ने (तेरे लिये) मुझे भेजा ; (सो) पद्मावती गई (तो कुछ चिन्ता नहीं उस के बदले ) ते ने अपारा पाई। अब जलना, मरना, तप और योग को छोड; मुझ से जन्म भर भोग विलास को मान, अर्थात् अब जन्म भर मुझ से भोग-विलास कर ॥ मैं वह कैलास को अप्सरा हूँ, जिस को बराबरी में कोई भी पूरा नहीं होता, अर्थात् मैं अनुपम सुन्दर अप्सरा है। मुझे छोड कर, जो यूँ उस ( पद्मावती) को स्मरण कर मर रहा है (दूस में तुझे) कौन लाभ होता है ? ॥ २१४ ॥ चउपाई। भलेहि रंग अाछरि तोहि राता। मोहिँ दोसरइ सउँ भात्रो न बाता ॥ मोहिँ ओहि सर्वरि मुअइ अस लाहा । नइन जो देखसि पूछसि काहा ॥ अबहिँ ताहि जिउ देह न पावा। तोहि असि आछरि ठाढि मनावा ॥ जउँ जिउ दइहउँ ओहि कइ आसा । न जनउँ काह होइहि कबिलासा॥ हउँ कबिलास काह लेइ करउँ। सो कबिलास लागि जेहि मरउँ ॥ ओहि के बार जीउ नहिं बारउँ। सिर उतारि नेत्रोछाोरि डारउँ॥ ता कर चाह कहइ जो आई। दुअउ जगत तेहि देउँ बडाई ॥ दोहा। ओहि न मोरि किछु अासा हउँ ओहि आस करेउँ । तेहि निरास पौतम कह जिउ न देउँ का देउँ ॥ २१५ ॥ भलहि = वरं हि भद्रं हि = अच्छा । रंग = रङ्ग = वर्ण । श्राछरि = अप्सरा । तोहि = तेरा वा तेरे में। राता=रक्त = ललित। मोहिँ = मुझे = मम। दोसर = दूसरा द्वितीय। भाश्रो=भाति = अच्छा लगता। बाता = वार्ता = बात। श्रोहि = उसे = तस्याः । सवरि