४७० पदुमावति । २२ । पारबती-महेस-खंड। [२१५ – २१५ से उस प्रियतमा (पद्मावती को) जौव न देऊँ तो क्या देऊ, अर्थात् उस के लिये जीव हौ का देना मैं उत्तम समझता हूँ ॥ २१५ ॥ सउँ कहा। चउपाई। गउरइ हँसि महेस निहचइ प्रहु बिरहानल दहा ॥ निहचइ यह ओहि कारन तपा। परिमल पेम न आछइ छपा ॥ निहचइ पेम पौर प्रहु जागा। कसइँ कसउटी कंचन लागा ॥ बदन पिअर जल डभकहिँ नइना। परगट दुअउ पेम के बइना ॥ यह प्रहि जरम लागि ओहि सौभा। चहइ न अउरहि उहई रोभा ॥ महादेओ देशोन्ह के पिता। तुम्हरे सरन राम रन जिता ॥ तस मया करेह। पुरवहु आस कि हतिा लेह ॥ दोहा। हतिआ दुइ जो चढाण्हु काँधइ अजहुँ न गइँ अपराधु। तेसरि माथ जउँ रे लेइ कइ साधु ॥ २१६ ॥ गौरी ने = पार्वती ने। हँसि = विहस्य = हँस कर। महेस = महेश महादेव । सउँ= से। कहा = क हद् (कथयति) का पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, भूत-काल का एक-वचन । निहचदू = निश्चयेन = निश्चय से । प्रड = अस्य = दूसे । बिरहानल = विरहानल = वियोगाग्नि = विरह को श्राग। दहा = दहदू (दहति) का पुंलिङ्ग, प्रथम- पुरुष, भूत-काल का एक-वचन । श्रोहि = तस्याः = उस के। कारन = कारण । तपा= तप किया (अतपत् )। परिमल पुष्प-पराग सुगन्ध द्रव्य । पेम = प्रेम। आछद = अच्छेन = स्वच्छतया = अच्छी तरह से । छपा = छपद् (क्षिपति) का पुंलिङ्ग, प्रथम पुरुष, भूत-काल का एक-वचन । पौर = पौडा = व्यथा =दर्द। जागा = जाग (जागर्ति) का पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, भूत-काल का एक-वचन । कस+ = कषन् = कसने से । कसउटी कषवटी = कसौटी = सोना कसने का पत्थल । कंचन = काञ्चन = सोना । लागा = लगा (अलगत् ) । बदन = वदन = मुख । पिपर पौत = पोला। जल = = पानी। डभकहिँ = डुबहि = बुडहिँ = बुडद् (ब्रुडति) का बहु-वचन । नदूना = नयन = आँख । परगट = प्रकट जाहिर । दुअउ = वे हि = वे अपि = दोनौँ । बदना = वचन = गउरदू = बैन । जरम =जन्म।
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५७६
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