४७४ पदुमावति । २२ । पारबती-महेस-खंड । [२१७ - २१८ हैं। ये धारा नगरी के राजा थे। भोजप्रबन्ध में इनकी विस्तृत कथा लिखी है। गोरखनाथ के लिये १२८ बैं दोहे की टौका देखो ॥ २१७ ॥ चउपाई। ततखन रतनसेन गहबरा। छाँडि डफार पाउँ लेइ परा॥ मात पितइ जरम कित पाला। जउँ अस फाँद पेम गिन घाला ॥ धरती सरग मिले हुत दोज। कित निनार कइ दोन्ह बिछोऊ ॥ पदिक पदारथ कर हुत खोा। टूटहिँ रतन रतन तस रोपा॥ गगन मेघ जस बरसहिँ भली। पुहुमौ पूरि सलिल होइ चलौ ॥ सापर उपटि सिखर गे पाटी। जरइ पानि पाहन हिअ फाटौ पउन पानि होइ होइ सब गरहौं। पेम फाँद केहू जनि परहौं । = दोहा। तस रोअइ जो जरइ जिउ गरइ रकत अउ माँसु। रोग रोग सब रोअहिँ सोत सोत भरि आँसु ॥ २१८॥ गहबरा= ततखन = तत्क्षणे = तिमी समय = उसी समय । रतन-सेन = रत्न-सेन (राजा)। गहर हो गया = गहन हो गया, अर्थात् व्याकुल हो गया। बाँडि = छोड कर ( संकुद्य)। डफार पुक्का फार रोदन = गाल फार रोदन । पाउँ= पाद = पैर । ले कर = पकड कर (श्रालाय)। परा= परइ (पतति) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन। मातदू माता ने। पित = पिता ने। जरम: जन्म दे कर। कित कुतः = क्यों। पाला = पाल (पालति) का प्रथम-पुरुष भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक वचन । जउँ यदि = जो। अस = एतादृश = ऐसा । फाँद = फंदा पाश = फसरो। पेम = प्रेम । गित्र = ग्रीवा = गला। घाला घालद् (गेर = गारयति ) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन। धरती= धरित्री = पृथिवी। सरग = वर्ग। मिले = मिले हुए (मिल सङ्गमे से )। हुत = थे। दोऊ = द्वावपि =दोनो। निनार = निनय = निलग्न = भिन्न भिन्न । दोन्ह = दिया (श्रदात् ) का बहु-वचन । बिछोऊ बिच्छुडन = वियोग। पदिक = रत्न-भूषण । पदारथ = पदार्थ । कर = हाथ । खोप्रा
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