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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६२३

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२३४ ] सुधाकर-चन्द्रिका। ५०५ - - उलटा पंथ पेम कई बारा। चढइ सरग सो परइ पतारा अब धुंसि लौन्छ चहइ तेहि आसा। पाव पास कि मरइ निरासा ॥ दोहा। पाती लिखि जो पठाई लिखा सबइ दुख रोइ । दहुँ जिउ रहइ कि निसरइ काह रजाण्सु होइ ॥ २३४ ॥ अस = एतादृश = ऐसा । बसंत = वसन्त-ऋतु । सुन्हई = तुम्हौँ । पद अपि। खेनड़ = खेलती हो (खेलथ )। रकत = रक्क = रुधिर। पराए = परस्य = दूसरे के। सेंदुर = सिन्दूर = सँधुर। मेलड़ = मेलती हो = लगाती हो (मेलयथ )। तउ = तो । खेलि = खेल कर (खेलित्वा)। मंदिर मन्दिर =ग्रह। कह = को। भाई श्रावद (अायाति) का मध्यम-पुरुष, भूत-कास, स्त्रीलिङ्ग का बहु-वचन। श्रोहि क = उम का मरम = मर्म = भेद। जानु =जान = जानता है (जानाति)। गोमाई = गोखामौ = भगवान् । कहेसि = कहा (कथयत्)। मरद = मरे (मरेत् )। को- कः = कौन । बारहि बारा वरम्बार । होउँ = होऊ (भवानि)। जरि=जल कर (प्रज्वल्य ) । क्षार राख । सर = भर = शरशय्या = चिता। रचि रच कर (श्रा- रचय्य)। चहा =चाहा = चाहद (इच्छति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । श्रागिः अग्नि भाग । चाई = गावे (जगयेः)। महादेवो महादेव । गउरद = गौरी ने। सुधि = शोध = खबर । पाई = पावद (प्राप्नोति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काज, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । पार = पा कर (एत्य)। बुझाइ = बुझा कर (निर्वाप्य )। दोन्ह = दिया (प्रदात् )। पँथ = पथ = पन्थाः = राह। नहर्वा = तहाँ = तत्र । मरन = मरणार्थ । खेल-लौखा । श्रागम = त्रागमन । जहाँ जहाँ उदर्तन = विपरीत। पेम = प्रेम। कद् = के। बारा- द्वार । चढ = चढे (उच्चलेत् वा आरोहेत्)। सरग = स्वर्ग । सो = सः = वह । परदू = पडे (पतेत्)। पतारा = अब = इदानीम् = अधुना । धंसि = धूम कर (प्राध्वंस्य) । लोन्ह = लेना। चहडू है (दूच्छति)। श्रामा = अशा = उमौद । पावद् = पावे (प्राप्नुयात् )। किवा = अथवा । मर = मरे (मरेत् ) । निरासा = निराश = नैराश्य = नाउम्मीद ॥ पाती = पत्रौ। लिखि = लिख कर (लिखित्वा)। पठाई = पठवडू (प्रेषयति वा प्रस्थापयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-कात, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । लिखा = लिखडू छारा= भस्म - =यच। उन्जटा- पाताल । =चाहता 64