पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६५५

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२४८] सुधाकर-चन्द्रिका। पानिहि काह खरग कइ धारा। लउटि पानि सोई जो मारा ॥ पानी सैंति आगि का करई। जाइ बुझाइ पानि जउँ परई ॥ दोहा। सौस दोन्ह मइँ अगुमन पेम पा सिर मेलि । अब सो पिरौति निबाहउँ चलउँ सिद्ध होइ खेलि ॥ २४८ ॥ यस्य =यस्य % 3D गुरू =गुरु । कहा कहद् (कथयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । चेला शिष्य । सिध = सिद्ध । होह = होहु = भवत = हो। पेम = प्रेम । बार = वार = द्वार । होदू = भूत्वा हो कर। करी= करिए = कुर्यासम् । कोह = कोह =क्रोध। जा कह जिस को। सौस = शीर्ष = भिर । नाइक = अानमय्य = झुका कर। दौजित्र- दीजिए दौयेत। रंग = रङ्ग = वर्ण । होय = हो = भवेत् । ऊभ = उद्वेग = घबडाहट भय । जउँ= यदि। कौजित्र= कीजिए = क्रियेत । जेहि जिस । जिप = जीव। पानि = पानीय = पानी। भा = अभूत् = डा। रंग = रंग। मिल = मिले मिलेत् । तेही = तिमी। होई = होवे = भवेत् । पद = अपि= निश्चय कर । जादू = जाय = यात् । सउँ = सौ = से। जूझा = युद्ध। कित = कुतः = कस्मात् = क्यों । तपि प्रतप्य= तप कर। मरहि = मरें = मरेयुः। जद् = जिन्हों ने । बूझा = बूझदू (बुध्यति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । यह = अयम्, वा इदम् । मत = सत्य । जूझि = युद्ध। करिश्रदू = कौजिए = कुर्यासम् । खरग खड्ग। देखि = दृष्ट्वा = देख कर। ढरिअ = ढरिए - धारा के ऐसा होदए । (ङ अवस्थाने से अङ प्रत्यय कर फिर टाप करने से धारा बनता है उसी से, ढरदू (धरति) होता है।) पानिहि = पानी को। काह = क्या = किम् । कडू = की। धारा धार। लउटि उच्चट कर = अवलुण्य । पानि = पानी। सोई = वहौ। मारा = मारद (मारयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । मैंति = मैंती = से। श्रागि= अग्नि। का= किम् । करई = कर (करोति)। जादू = याति=जाती है। बुझादू = बुझ । परई = पतेत् = पडे ॥ दोन्ह = अदाम् =दिया। अगुमन = अग्रतः । पात्र = पाद = पैर । सिर = शिर । मेलि = मेलयित्वा = डाल कर। पिरोति = प्रौति । निबाहउँ = निर्वाहयामि= निबाहता हैं। चलउँ = चलामि = चलता हूँ। खेलि = खेलयित्वा = खेल कर ॥ 68