३५१ सुधाकर-चन्द्रिका। ५४३ को मोहिँ लैइ सो छुआवइ पाया। नउ अउतार देइ नइ काया ॥ जौउ चाहि सो अधिक पिारी। माँगइ जीउ देउँ बलिहारी ॥ माँगइ सौस देउँ सइँ गौत्रा। अधिक नवउँ जउँ मारइ जीवा ॥ अपने जिउ कर लाभ न मोही। पेम-बार होइ माँगउँ ओहौ ॥ दोहा। दरसन ओहिक दिला जस हउँ र भिखारि पतंग। जउँ करवत सिर सारइ मरत न मोरउँ अंग ॥ २५१ ॥ मो= = मा = वह । पदुमावति = पद्मावती। हउँ = अहम् = मैं । चेला = शिष्य । जोग = योग। तंत = तन्त्र = शास्त्र । जेहि =जेहि = जिस । कारन = कारण । खेला खेल (खेलति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन। तजि = त्यक्ता = त्याग कर। मोहि = श्रोहि = उस । बार = द्वार = दरवाजा । जानउँ =जानामि = जानता हूँ। दूजा = दूसरा = द्वितीय। मिल = मिलेत् = मिले। जातरा = यात्रा। पूजा = पूरी हुई = पूर्यंत । जीउ = जीवप्राण। काढि कर्षयित्वा = खौंच कर निकाल कर । भुइँ = भूमि मैं। धरउँ = धरूँ =धराणि । ललाटू = ललाट = मस्तक। कह = को। देउँ =दद्याम् = देऊँ। हिश्रा हृदय= दिल । मँह = मध्ये = मैं। पाटू = पाट = पट्ट = पौढा = आसन । को = कः = कौन । मोहि = मोहिँ = मुझे। लॅदू = लेद - ले कर । मो= वह, यहाँ उस का। कुश्रावद् = छुआवे (स्पर्शयेत्)। पाया = पाय = अउतार = अवतार जन्म । देव = दद्यात् = देवे । नउ= नवा = नई। काय = शरीर । चाहि = बढ कर। अधिक ज्यादा। पित्रारौ= प्रिया = प्यारौ। माँग = याचेत = माँगे। बलिहारी= बलिदान । मौस = शिर । मर्दू = सह = साथ। गौत्रा = यौवा = गल्ला । नवउँ = नमेयम् = झुकू । जउँ= यदि। मार = मारयेत् = मारे। जोत्रा = जीव = प्राण । अपने = श्रात्मनः । कर = का । लोभ = लालच । मोही मोहौं = मुझे। पेम = प्रेम। बार = वार = द्वार = दरवाजा । होदू = हो कर =भूत्वा । ओहो = उसी से ॥ दरसन =दर्शन । श्रोहिक श्रोहिक = उस का। दिवा = दीप = दौत्रा = चिराग । -जैसे। भिखारि= भिखारी= भिक्षुक = भिखमंगा । पतंग = फतिंगा
लात्वा
पाद =पैर। नउ=नव=नया। काया जस-यथा =