५५४ पदुमावति । २४ । मंत्री-खंड । [२५६ 1 । 59= बडह मकेत उदधि = उदक (जल) जिम में रहे। समुंद = समुद्र। जम = = जैसे
था। तरंग
तरङ्ग = लहर। देखावा = देखावद (दर्शयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । चखु = चक्षुः = आँख। घूमहि = धर्मयन्ति = घूमती हैं। बात = वार्ता = बोली। श्रावा = श्रावद (आयाति)= पाती है। यह = अयम्, वा इदम् । सुठि = सुष्टु = अच्छा । लहरि लहर = लहरौ = तरङ्ग । धावा = धाव = धावद् (धावति) = धावतो है =दौडती है। भवर (=भ्रमर = और । परा = पडा पतित। जिउ=जीव = प्राण। थाह = स्थल = जमौन। पावा = पाव = पावद (प्राप्नोति) = पाता है। मखौ हे पालौ। प्रानि = श्रानीय = श्रान कर = हा कर। देह =देश्रो = दद्याः । त=तम्=ितो। मरऊ = मरूं मराणि । पेट = पिटक = उदर । ताहि = तिम के । डर =दर =भय । डरऊ= डरती हूँ (दरामि= विभेमि) ॥ खनहिँ = क्षण में। उठ = उत्तिष्ठते = उठता है = ऊपर आता है। खन = क्षण में। बुडते = बुडता है = डूब जाता है। श्रम = ऐसा = एतादृश। हि हृदय। संकेत = संकष्ट = महादःख । हीरामनिहि = होरामणे: = हीरामणि (शक) को। बोलावह = बोलावद् (वादयति ) का विध्यर्थ में मध्यम-पुरुष का बहु-वचन । मखौ हे पाली। गहन = ग्रहण । लेत = लेदू (लाति) = लेता है ॥ सूर्य का नाम सुन कर (पद्मावती) कमल खिल उठा, भ्रमर लौट कर ( उस के) रस का वास लेने लगा, अर्थात् शरीर में प्राण श्रा जाने से शरीर को सुगन्ध चारो ओर फैल गई जिम से फिर भ्रमर लौट कर बाम लेने लगे। पारद काल के चन्द्र ऐसे मुख ने जीभ खोली, खनन नयन, अर्थात् खञ्जन से नयन क्रौडा कर उठे, अर्थात् खुले। खच्चन, और मकली को चञ्चलता ले कर कवि लोग आँख की उपमा खञ्जन और मछली से देते हैं। गिरिधरदास ने भी लिखा है कि 'सफरौ से चल नैन' । विरह से मुख बंद हो गया, बोल नहीं पाती है, प्राण मर मर कर जबर्दस्ती से बोलो (कुछ ) बात कहता है। कठिन विरहाग्नि से हृदय काँपने लगा, विरहदुःख (फिर मुख को) बंद कर दिया, ( मुँह ) खोला नहीं जाता । सुखाद पानी के समुद्र ऐसा (विरह ने ) तरंग को देखाने लगा, आँख घूमने लगौ, मुंह से बात नहीं पाती। पुराणों में कथा है कि जिस समुद्र का सुखाद पानी है उसी में वडवानल है जिस कारण से उस समुद्र में बडे बडे तरंग उठते हैं। भास्कराचार्य ने भी अपनी सिद्धान्त - शिरोमणि के गोलाध्याय में लिखा है कि “स्वादूदकान्तर्वडवानलोऽसौ”। बडे तरंग हो के - 9