पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६९८

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५८० पदुमावती । २५ । सूरी-खंड । [२६८ चढदू । श्राजू

श्राज

चलिए। भट= कर का। श्रासन = बैठने की स्थिति । टरा = टर (चलति) का भूत-काल, प्रथम- पुरुष, एक-वचन । अउ = अपि = और । हमि = हसित्वा = हँस कर। पारबती पार्वतौ = महादेव की स्त्री। सउँ= से। कहा = कहदू (कथयति) का भूत-काल, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । जानहुँ जाने = जान पड़ता है। सूर = सूर्य वा शूर बहादुर। गहन = ग्रहण । गहा = जग्टहे = गहा गया = पकड गया। श्राजु = अद्य = श्राज। उच्चलने चढने में । गढ = गाढ = दुर्ग = किला । ऊपर = उपरि । तपा= तपखौ = योगौ। राजदूँ =राज्ञा = राजा ने। तब = तदा । छपाछपडू (पति) का भूत-काल, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । नग= जगत् = संसार। देख दर्शनार्थ = देखने। कउतुक= कौतुक लीला खेल। कद के अाजु। कौन्ह = अकृत = किया। मारदू कह = मारने के लिये। माजू = सज्जन = तयारौ। सुनि = श्रुत्वा = सुन कर। पाएन = पायँ का बहु वचन, पाय = पाद = पैर। परौ = पर ( पतति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । चल = चलथ = महेस = महेश महादेव । देखहि = देखें = पश्येव । प्रक= एक। घरी= घटी चौबिस मिनिट, यहाँ एकक्षण = क्षणभर । भेस = वेष = रूप । भाट कवित्त में यश पढने-वाला। भाटिन भाट को स्त्री। कर = का। कौन्हा = कौन्ह = अकृत = किया। हनुवंत = हनुमान् = राम का प्रसिद्ध भक्त, लङ्का जलाने-वाला। बीर वौर योद्धा = बली। अँग = संग सङ्ग = साथ। लौन्हा = अलात् = लिया = लीन्ह । श्रादू = एत्य = श्रा कर । गुपुत = गुप्त, गुपुत होइ = गुप्त हो कर = छिप कर । देखन = देखने में । लागे लग्न हुए = लग गए। दऊँ = देखें । मूरति = मूर्ति। कम कथम् = कैमौ। सती= सच्ची। सभागे = भाग्यवान =भाग्य के सहित ॥ कटक= सेना = फौज। असूझ जो समझ न पडे कि कितनी है अपार = प्रशोध। देखि कदू = दृष्ट्वा = देख कर। (श्रापनि) = श्रात्मनः = अपनी। राजा गन्धर्व-सेन । गरब गर्व = गरूर = अभिमान । करे = कर (करोति) = करता है। ददउ = देव = भगवान् । क =की। दमा = दशा = हाल गति = लोला। देखिद देखी जाती है। दऊँ = न जाने = दो में से एक। का कह = कस्य = किस को। जदू = जय = विजय =जीत । देव दद्यात् =दे ॥ जैसे ही योगिनों पर ऐसा दुःख पडा (उसी क्षण) महादेव का श्रासन टल गया, ( पार्वती की ओर मुँह को फेर लिया)। और हँस कर पार्वती से कहा कि जान पड़ता है