पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७००

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५२ पदुमावती । २५ । सूरी-खंड । [२६६ समाद

पन्थाः

शिर। मनः। समाधि = चित्तवृत्तिनिरोध सब तरफ से चित्त को हटा लेना। ता मउँ तिम से। लागी = लग (लगति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । जेहि = जेहि यस्याः = जिम के । दरसन = दर्शन। कारन = कारण । बदरागी=बैरागी = विरागौ। समापित = समाय । रूप = सूरत । श्रोहि = श्रोहि = उस के = तस्याः । नाऊँ नाव नाम। अउरु = अपर = और। सूझ = शुध्यति = सूझता है। बार = द्वार = दरवाजा। जहँ = यत्र = जहाँ । जाऊँ = यानि । अउ = और = अपि। महेस = महेश महादेव । कह = का। करउँ = करोमि = करता हूँ। अदेसू = आदेश = आज्ञा। प्रहि अस्मिन् = दूस। पंथ राह। उपदेसू = उपदेश = शिक्षा । पारबती = पार्वती महादेव की स्त्री। सुनि = श्रुत्वा = सुन कर । सत्त=सत्यता =सत्ता। सराहा सराहद् (श्लाघते ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । फिरि = घूम कर । मुख = मुँह । कर = का। चाहा: = चाहदू (दूच्छति) का भूत-काल पुंलिङ्ग, एक-वचन। हद् = हहिँ = मन्ति = हैं। पद् = अपि = निश्चय से । भई = होदू (भवति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । महेसो= महेशी = पार्वती। कित = कुतः कस्मात् = क्यौँ । सिर नावहि = नामयेयुः = नवावें । यह = एते = ये। परदेसी = परदेशी = दूसरे देश के रहने-वाले। मरतहु = मरते समय भी = मरती बेरा भौ। लीन्ह अलात् = लिया। तुम्हारद = तुम्हारा हो = भवतां हि । तुम्ह = श्राप । चुप = मौन। कीन्ह = अकृत = किया। सुनहु = श्टणुथ = सुनिए । ठाऊँ = स्थान = ठाव ॥ मारत हद् = मारयन्ति = मारते हैं। राखि लेड रख लेत्रो= बचा लेगी। बेरि = बेरा=अवसर। कोदू = कोऽपि = कोई। काहु कर = किसी का = कस्यापि । जो = यः। हो जादू = हो जाय । निबेरि= निपटाने-वाला = निवारण करने-वाला ।। ऐमी बोली पर तपखौ (रत्न-सेन) ठहर गया और पद्मावती पद्मावती जपने लगा। (कहने लगा कि) मन में पद्मावती से समाधि ऐसौ लग गई, जिस के लिये कि बैरागी हुआ है। उसी (पद्मावती) के नाम में (मेरा) रूप समा गया है, और दूसरा द्वार नहीं सूझ पडता जहाँ जाऊँ। और महादेव का कहा करता हूँ जिन्हों ने इस राह में (जाने के लिये ) उपदेश दिया। (इस बात को) सुन कर पार्वती ने (राजा रत्न-सेन के) सत्य को सराहा, अर्थात् राजा रत्न-सेन की पद्मावती में सच्ची प्रौति है, इस बात की प्रशंसा की और फिर कर महादेव जी के मुंह को देखने लगी (कि दून के मन में क्या है)। (कवि कहता है कि एक तो) महादेव हौ

रक्षथ