पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७२२

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१०४ पदुमावति । २५ । सूरी-खंड । [२७८ सङ्काम। सेना। । काछ+ = कक्षित = कच कसे लँगोटा कसे। मंत्रिन्ह मन्त्रिभिः मन्त्रिौँ ने। कहा = अकथयत् । सुनहु = श्टणुथ सुनिए । हो = अहो = हे = उच्च सम्बोधन । देखा = पश्यथ = देखिए । अब = इदानीम् = अधुना । जोगिन्ह = जोगी का बहु-वचन । के का का बहु-वचन । काजा = कार्य = काम। हम = हौं वा मैं का बहु वचन। जो = यः जो। बड = हत् बडा।ता कर =तस्य तिम का= उस का। जूझू युद्ध । होत = होता भवन् । श्राउ = आयाति आता है। दर = दल बहुत = बहुतर = अधिक । असूझू = असूझ अशोध=जिम कौ गाना खन = क्षण | एक = एक । मह = मध्ये = में । छरहट = चरहट्टा = मरने की बाजार। होदू = भूत्वा हो कर । बौता-बौत -बीतता है = व्यत्येति । छरहि = क्षरन्ति मरते हैं। रहद = तिष्ठति = रहता है। सो सः = वह । जौता=जीत =जयति जीतता है। कद् = कृत्वा = कर के। धीरज धैर्य। तब = तदा । कोपा = चुकोप कोप किया = क्रोध किया। अंगद अङ्गद बालि का पुत्र, सुग्रीव का भतीजा। आ= एत्य श्रा कर। पात्रो पाद = पैर । रोपा =रोपद् (रोपयति रुह, बीजजन्मनि प्रादुर्भावे से ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । हसति = हस्तौ = हाथो। पाँच पञ्च। श्रगुमन =अग्रगमन = पहले। धाए= धाव (धावति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, बहु-वचन । ते वे। सुंड =ण्ड = हाथी का हाथ । फिराए फिरावद (भ्रमयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, बहु-वचन । दीन्ह अदात् दिया । अडारि = अधारण प्रक्षेपण = फैक। सरग वर्ग। कह को। गए=जाद ( याति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, बहु-वचन । लउटि = परावर्त्य = लौट कर । बहुरे फिरद् (परिवर्त्तयति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम- पुरुष, बहु-वचन। तह =तत्र । भए बभूवुः हए॥ देखत पश्यन् = देखते । रहे = तस्थुः । थे । अचंभउ= अचंभा आश्चर्य । बहुरि = फिर = भूयः । आप = आए। कर का। अस एतादृश = ऐसा । जूझब = योद्धव्य = जूझना = लडना । पुडमि = भूमि = पृथ्वी। लागहिँ = लगन्ति = लगते हैं। पाँप्र पाँय = पैर = पाद ॥ (पहले कहे हुए ब्रह्मादिक ने ) योगिओँ को पकड कर पीछे कर दिए, और रण में लंगोटा कम कम मब ( ब्रह्मादि) माल उतर पडे । (गन्धर्व-सेन के ) मन्त्रिओं ने कहा कि हे राजा, ( मेरी बात ) सुनिए, अब योगिओँ के काम को देखिए। हम ने जो