पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६२४ पदुमावति । २५ । सूरौ-खंड । [२८६ बाल= - गए देत्रो = देव = देवता। अनंद = आनन्द = खुशौ। ददति = दैत्य = दिति से उत्पन्न । मिर शिर । दूखा = दुखद (दुष्यति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम पुरुष, एक-वचन । सरग =स्वर्ग = आकाश। सूर = सूर्य। भुइँ = भूमि = पृथ्वी। सरवर = सरोवर = उत्तम तडाग = अच्छा पोखरा = अच्छा तालाव । केवा = कमल । बन-खंड = वन-खण्ड = वन- भाग। भवर = भ्रमर = भौंरा। भण्उ = बभूव = हुआ = भया । रस-लेवा = रस लेने- वाला= रसग्राहक रसलः । पछिउँ = पश्चिम पच्छिम। क = का। बार = बालक= वर । पुरुब - पूर्व = पूरब । कदू = कौ । बारी= बालिका = लडकी । जोरौ जोडी = युग = युग्म । होइ = भवति = होती है। निनारी= अलग-निर्नला। मानुस मानुष = मनुष्य । साज = सज्जन = तयारी। लाख = लक्ष । पद श्रपि= निश्चय कर। माजा = माजद (मज्जते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । बिधि विधि = ब्रह्मा । सोई = म एव = वही। बाजा = बाज (वाद्यते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन ॥ अगुः। बाजन = वादन = बाजा। बाजत= -बजते वदन्। जेहि = यस्य = जिसे मारन = मारणार्थ = मारने के लिये । रन = सङ्घाम । माह = मह = मध्ये = में। फिरि = फिर कर = भ्रमित्वा = घूम कर। बाजे = बाजदू (वाद्यते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुम, बहु-वचन । ते = वे । बाजे = बाजन = वादन । मंगलचार मङ्गलाचार मङ्गल को रौति । उनाँह = उन्नद्ध = संनद्ध कमल (पद्मावती) के लायक (रत्न-सेन) सूर्य वर को देख कर सब लोग 'एवमस्तु' ‘एवमस्तु' अर्थात् 'यह योग्य वर है' 'यह योग्य वर है' ऐसा बोलने लगे। (कवि कहता है कि इस प्रकार से ) वह उज्चल वंश का अंश मिला, (फिर ) बरच्छा हुआ और (विवाह के लिये) तिलक रचा गया। अनिरुद्ध को जो (ब्रह्मा ने ऊषा को) जय-माला लिखी थी उस को कौन मिटावे, (अन्त में ) वाणासुर हार हो गया। श्राज ऊषा ने अनिरुद्ध को वरा, देवताओं में श्रानन्द हुआ, दैत्यों का शिर दुखने लगा, अर्थात् श्राज पद्मावती ने रत्न-सेन को वरा, पद्मावती के पक्ष के लोग आनन्दित हुए और विरोधिओं का शिर दुखने लगा। ( कवि कहता है कि देखो) वर्ग में सूर्य रहता है, पृथ्वी पर सरोवर में कमल रहता है (जिस से कमल खिल उठता है), और वनविभाग से भौंरा पा कर (उस कमल का) रस लेने वाला हुआ, अर्थात् सिंहल की रहने-वाली पद्मावती हीरामणि शक सूर्य से खिल उठी और समुद्र पार संबन्ध ॥ (