४४ पदुमावति । २ । सिंघलदीप-बरनन-खंड । [२६ - मनोहर मरकत के ऐसे जो शुक है, वे रहचह करते हैं (आपस में कल्लोल कर के बोलते हैं ) । परेवा ( कबूतर ) कुरकुर करते हैं (दून को बोलौ में भी कुरकुर धुनि जान पडतो है । कोई घुरघुर धुनि बतलाते हैं, उन के मत से घुरहिँ यह पाठ है), और कलबलाते हैं, अर्थात् इधर से उधर उडते हैं ॥ पपीहा पौउ पौउ करने लगे हैं। (पपोहे को बोली से पौउ पौउ धुनि निकलती है)। गुडुरू तुहौँ तुही कर के, खौहा, अर्थात् खो खो, करता है। अर्थात् इस की बोली में 'तुहौं खौ' 'तुहौं खौ' यह धुनि निकलती है ॥ यह पक्षी हमारे प्रान्त में नहीं प्रसिद्ध है ॥ कोयल कुहू कुहू कर रकबे हैं, अर्थात् कुहू कुहू बोल रहे हैं कुहू कुहू कोयल के बोलौ को धुनि है)। और भृङ्गराज अनेक भाषा को बोलता है॥ (दूस का ऐसा स्वभाव है, कि जिस को बोलौ सुने, वैसा-हौ बोलने लगे। यह बहु-मूल्य और भुजङ्गे की तरह प्रसिद्ध पक्षी है। धनी लोग बोली सुनने के लिये पालते भी हैं ) ॥ महरि दही दही कर के पुकारतो है। (दही दही दूस के बोलो को धुनि है। दूस को बहुत लोग खालिनि वा अहिरिनि कहते हैं। यह महोखे से कुछ छोटी, उसी जाति को इस देश में प्रसिद्ध है)। हारिल अपने हारे हुए को बिनती करती है, अर्थात् दूस की बोली यही धुनि निकलती है कि ‘हा हारि गई' 'हा हारि गई'। (यह पक्षी सुग्गे की तरह हरे रंग का होता है, और बहुधा, बर, पीपर और पाकर पर रहता है। पृथ्वी पर नहीं उतरता। यदि पानी पीने के लिये उतरना पड़ा, तो पञ्जे में हण लिये हुए उतरता है, और उसी के आधार से पानी पी कर पैंड पर चला जाता है। पृथ्वी पर अपने पैर को नहीं रखता। ऐसी कहावत है कि मारने से भी जब भूमि पर गिरता है, तब पैर को ऊपर किये हुए रहता है। इस देश में प्रसिद्ध है। खाने- वाले इसे खाते भी हैं ) ॥ मोर कुहकते हैं, जो (कुहकना ) सोहावन (अच्छा ) लगता है, (इस को बोलौ से कूँ · धुनि होती है), और (जब ) काग ( कौए) बोलते हैं, (तब ) कोलाहल हो जाता है, अथवा तब कोराहर होने लगता है, अर्थात् कर कर होने लगता है। (कौए की बोली को कर कर धुनि है) ॥ जितने पक्षी कहे हैं, अर्थात् प्रसिद्ध हैं, सब अमरावती भर बैठे हैं । और अपनी अपनी भाषा में सब देव (ईश्वर) का नाम लेते हैं । तीसरी चौपाई में बहुत लोग ‘मारी सुश्रा जा रहचह करहौं', यह पाठ कहते हैं, परन्तु सब पुस्तकों में सारउ यही पाठ मिलता है। सारौ (= सारिका पहाडी मैना) -
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/९२
दिखावट