पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१४२

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૮૩ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 3 8. NANAK ON THE UNITY OF THE INTERNAL AND THE EXTERNAL GOD. काहे रे बन खोजन जाई ॥ टे॥ सर्व निवासी सदा अलोपा, तोहे संग समाई 11211 पुष्प मध्य जिमि वास बसत है, मुकुर मँह जैसे छाई ॥२॥ तैसे ही हरि बसै निरंतर घट ही खोजो भाई 11311 बाहर भीतर एकहि जानो, यह गुरु ज्ञान बताई 1811 कह नानक बिनु आपहिं चीन्हे मिटै न भ्रम की काई ॥५॥