पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२३९

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Pada 16] Ascent १८१ (१६) अनुवाद जहां बाजे के बिना ही झनकार उठती हैं, ऐसी गगन गुफ़ा में अजर रस झरता है । जब ध्यान धरता है तभी यह समझ पड़ता है | जहां ताल के बिना ही कमल फूलता है, उस पर चढ़कर हंस केलि करता है । चन्द्रमा के बिना ही वहाँ उजाला (चन्द्रिका ) दिखाई देता है | जहां तहां हंस नज़र पड़ता है । जब दसवाँ द्वार ताली लगने से खुल जाता है, तब वहाँ जो अलख पुरुष है उसका ( साधक ) ध्यान लगाता है । कराल काल निकट नहीं आता । काम क्रोध मद लोभ जल जाते हैं । युग-युगों की प्यास बुझ जाती है । कर्म, भ्रम, अध, व्याधि टल जाते हैं । कवीर कहते हैं कि हे साधो सुनो; (जीव ) अमर हो जाता है और कभी मृत्यु के फँदे में नहीं पड़ता ।