पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४१

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Pada 171 Ascent. १८३ (१७) अनुवाद. अमृत रस चूने से जहाँ ताल भर रहा है, वहाँ गगन भेदी शब्द उठता है । सरिता उमड़ कर सिन्धु को सोख रही है । कुछ वर्णन नहीं करते बनता । वहाँ न चाँद है न सूर्य हैं और न तारागण हैं । और न रात है न प्रभात है । सितार और बाँसुरी (आदि ) बाजे बज रहे हैं । मधुर वाणी से राम-राम ध्वनि उठ रही है । जहाँ तहाँ करोड़ों झिलमिलें झलकतीं हैं | जल के बिना ही पानी ( तेज बरस रहा है, और, दसों अवतार एक ही रात में ( या लगातार ) विराजते हैं । मुख में स्तुति अपने आप आती है । कवीर कहते हैं कि, ये रहस्य की बातें हैं । इन्हें कोई विरला ही पहचानता है ।