पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३३२

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૨૩ परमार्थसोपान [ Part II Ch. 5 10. CONSTANT SERVICE AND WATCHFUL HUMI- LITY ALONE LEAD ONE TO THE REALISA- TION OF THE PERSON AND THE LOVE OF SHABDA. अलख पुरुष निर्वाण है, बाको लखे न कोय | वाको तो वाही लखै, जो उस घर का होय ॥ घर का भया तो क्या भया, तखत तरे का होय । तखत तरे का सूरमा, सबद सनेही सोय || 11. THE METAPHYSICAL AND EPISTEMOLOGICAL SIGNIFICANCE OF SHABDA. सबद सबद का अन्तरा, सबद सबद का सीर । सवद सबद का खोजना, सबद सबद का पीर ॥ 12. THE EVER-ASCENDING LADDER OF SHABDA मकड़ी चढ़ती तार से, चढ़के उतरी जाय । सन्त चढ़त है शब्द से, चढ़त चढ़त चढ़ जाय ॥