पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५१३

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15 • It is remarkable that those who have had mystical experience regard the ч as merely a. स्वभावोक्ति. For the high status of अद्भुतरस in the scheme of the Alankaras, compare:--- ज्ञानेश्वरीः - जेथ शांतांचिया घरा अद्भुत आला आहे पाहुणेरा । आणि येरां ही रसा पांतिकरा जाहला मानु || 9 भक्त्यन्तर्गत भक्ति- -XI. 2. There is no other object of adoration for the devotee .except his ultimate self ( अभेदभक्ति ): Compare:- (a ) भगवद्गीता - यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति (b) ज्ञानेश्वरी-1 दर्पणाहूनि चोखें । दोन्ही होती सन्मुखे तेथ येरों येर देखें | आपण पै जैसे । तैसा देवेंसी पंडुसुतु | आपणपें देवीं देखतु पांडवेंसी देखे अनंतु । आपण पार्थी ॥ (c) परमार्थसोपान - -VI. 20 -XVIII-1590.91. (i) आनंद नहायां बन्दा खुदा, दोनो बिसर गया बेनाम का नाम होकर, रहटाना राहा । -I. 5-27. (ii) स्वयं प्रतिमा वन पुजारी, इस जगत में पुज रहा मौन होकर साधना का भेद पूरा कह रहा है ॥ I. 5-28. है