पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५३५

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V सूरदास 1 धोखे ही घोखं उहकायो I1 2 ऊधो धनि तुम्हरो वेवहार I5 3 कीजै प्रभु अपपे विरदकी लाज I 6 4 जा दिन मन - पंछी उड़ि जैह I 9 ..5 रे मन जनम अकारथ जात I 6 छाँड़ि मन हरि - बिमुखन को सङ्ग II 7 अब मैं नाच्यों बहुन गुपाल II 8 गोपी सुनहु हरि सन्देस II 9 ऊधो हमहि न जोग सिख है II 10 अबकी राखि लेहु भगवान III 112312 14 14 11 मेरो मन अनत कहाँ सुख पाव III 13 12 सुनारे मैने निर्बल के बल IV lg 13 वन्दउँ श्रीहरि-पद सुखदाई V 4 14 अव तो प्रगट भई जग जानी V 5