पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५३८

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viii 20 गुण इन्द्री सहजै गये V 7 31 सब बाजे हिरदे वर्ज V .9 32 अलख अलख पुरुष निर्वाण है V 10 33 सबद सवद का अन्तरा V 11 34 हरि दरिया सूभर भरा V 14 35 सुन्न मंडलमें घर V 15 36 गगन गरजि वरसै अमी V 16 37 पिञ्जर प्रेम प्रकासिया V 18 38 हृदया भीतर आरसी V 21 39 मनुवा मेरो मरि गयो V 23 30 कविरा देखा एक अङ्ग V 24 41 सुरत उड़ानी गगनको V 25 42 कविरा खड़ा बजार में दोनों V 30 43 मेरा मुझ में कुछ नहीं V 31 44 कबिरा हम गुरुरस पिया V 33 45 नोन गला पानी मिला 46 हद हद पर सब ही गया >> 34 35 तुलसीदास 1 तुलसी कर पर कर करें II 9 2 तुलसी यह जग आयकै II 11 3 घर राखे घर जात है II 12 4 तुलसी मूरति राम की III 3 5 अन्तर्जामिहुँ तें बड़ III 4 6 सगुनह अगुनहि नहि कछु III 5 7 घर घर माँगे टूक III 8 चित्रकूटके घाट पर III 88 9 अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा IV 7 10 हम लखि लखहि हमार IV 8 11 एक छत्र एक मुकुटमनि IV 9