पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५४३

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57 नाम रूप दुइ ईस उपाधी 58 नैनहीन को राह दिखा प्रभु 59 नौकरी शरिअतसे करना अज्ञात कवीर तुलसीदास IV 5 III 14 IV 14 60 पायो जी मैने रामरतन मीराबाई V 1 61 पावन जस है माधो तेरा रैदास V 32 62 पावन पर्वत वेद पुराना तुलसीदास II 12 63 प्रीति लगी तुव नामकी कवीर IV 16 64 फागुन के दिन चार रे 65 बन्धनों की शङखला को 66 बहुरि नहिं आवना या देस 67 बिनु पग चलै सुनै बिनु काना 68 बिसर गई सब आप 69 ब्राह्मण सो जो ब्रह्म पिछाने मीराबाई V 2 गिरीशचन्द्र V 28 कबीर I11 तुलसीदास IV 6 नानक II 6 चरनदास II 5 70 भूले मन समझके लाद लदनिया कबीर IV 10 71 मन मस्त हुवा तब कवीर V 24 72 मन लागो यार फकीरी में कवीर II 4 73. ममता तू न गई मेरे मन तें तुलसीदास I 8 74 महरम - होय सो जार्न साधो कवीर V 15 75 मुसाफिर सोता है वेहोस कृष्णानंद I 3 76 मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै सूरदास III 13 77 में मझधारा का माँझी हूँ अज्ञात III 11 78 या विधि मनको लगाव कवीर IV 8 79 रमैया कि दुलहिनि लूटल कवीर V 25 80 रस गगन गुफा में अजर झरै कवीर V 16 81 रामरस मीठा रे कोई. पी दादू V 20 82 रे दिल गाफिल गफलत मत कवीर I 15 83 रे मन जनम अकारथ जात सूरदास I 14 84 वन्दउँ श्रीहरिपद सुखदाई सूरदास V 4 85 वोई सद्गुरु सन्त कहावै 86 शंकर रामरूप अनुरागे कवीर IV 3 तुलसीदास 1 7