1 प्रेम के निश्चित रूप से नष्ट हो जाने पर, या किसी और व्यक्ति से उलट अतएव, पूजीवादी उत्पादन के आसन्न विनाश के बाद यौन-सम्बन्धो का स्वरूप क्या होगा, उसके बारे में आज हम केवल नकारात्मक अनुमान नहीं रहेंगी। परन्तु उसमे कौनसी नयी चीजें जुड़ जायेंगी? यह उस ममय निश्चित होगा जब एक नयी पीढी पनपेगी-ऐसे पुरपों को पीढी जिसे जीवन परन्तु एकनिष्ठ विवाह से वे सारी विशेषताएं निश्चित रूप में निट जायेगी, जो सम्पत्ति के सम्बन्धों से उसके उत्पन्न होने के कारण पैदा हो गयी हैं। वे विशेषताएं ये है : एक तो पुरुष का आधिपत्य , और दूसरे विवाह-सम्बन्ध का अविच्छेद्य रूप। दाम्पत्यजीवन में पुरुष का आधिपत्न केवल उसके आर्थिक प्रभुत्व का एक परिणाम है , और उस प्रभुत्व के मिटने पर वह अपने आप ख़तम हो जायेगा। विवाह-सम्बन्ध का अविच्छेद स कुछ हद तक उन आर्थिक परिस्थितियो का परिणाम है जिनमें एकनिष्ठ विवाह को उत्पत्ति हुई थी, और कुछ हद तक वह उस समय से चनी आती हुई एक परम्परा है जबकि इन आर्थिक परिस्थितियों तथा एकनिष्ठ विवाह के सम्बन्ध को ठीक-ठीक नहीं समझा गया था और धर्म ने उसे अतिरंजित कर दिया था। आज इस परम्परा में हजारों दरारें पड़ चुकी हैं । यदि केवल प्रेम पर आधारित विवाह नैतिक होते है, तो जाहिर है कि केवल वे विवाह ही नैतिक माने जायेगे जिनमें प्रेम कायम रहता है। व्यक्तिगत यौन-प्रेम के आवेग की अवधि प्रत्येक व्यक्ति के लिये भिन्न होती है। विशेषकर पुरुषों में तो इस मामले में बहुत ही अन्तर होता है। और प्रेम हो जाने पर, पति-पत्नी का असग हो जाना दोनो पक्ष के लिये भार समाज के लिये भी हितकारक बन जाता है। तब वे तलाक के मुकदमे की कीचड़ मे से व्यर्थ में गुजरने से बच जायेंगे। कर सकते है ,-अभी हम केवल इतना कह सकते है कि क्या चीजें तर भर कभी किमी नारी की देह को पंसा देकर या मामाजिक शक्ति के रिमी द्वारा खरीदने का मौका को पीदी जिगे कभी मच्चे प्रेम के मिवा और किसी कारण से विसी पुरुष के गामने मात्मसमर्पण करने के लिये विवश नही होना पड़ा है, भौर : ही जिगे मार्थिक परिणामो के भय से अपने को अपने प्रेमी के सामने मात्मसमर्पण करने में कभी रोकना पड़ा है। और जब एक बार ऐसे स्त्री- पुरुष इस दुनिया में जन्म से लगे, तब वे इस यात की तनिक भी चिता अन्य माधन मिला है, और ऐसी नारियों
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