. परन्तु फिर किया क्या जाता? पुराना गोत्र-संघटन मुद्रा के विजय- अभियान को रोकने में न केवल सर्वथा असमर्थ सिद्ध हो चुका था, वह इस बात के भी सर्वथा अयोग्य था कि मुद्रा, महाजन , कर्जदार और कर्ज की जबर्दस्ती वसूली जैसी चीजो को अपनी व्यवस्था के अन्दर स्थान दे सके। परन्तु नयी सामाजिक शक्ति उत्पन्न हो चुकी थी, और न तो लोगों की सदेच्छामो मे यह ताकत थी और न पुराने जमाने को फिर से तोटा लाने को उनको अभिलापाओ मे यह सामर्थ्य थी कि वे मुद्रा और सूदखोरी के अस्तित्व को नष्ट कर सकती। इसके अलावा, गोत्र-व्यवस्था मे अन्य अनेक छोटी-मोटी दरारे पड़ चुकी थी। ऐटिका के हर कोने में, खासकर एथेंस नगर में गोत्रो और विरादरियों के सदस्य आपस मे गडमड हो रहे थे। पीढी-दर-पीढी यह चीज़ बढ़ती ही जा रही थी, हालाकि एथेंसवासियों को अपनी जमीन तो गोन के बाहर बेचने की इजाजत थी, पर वे अपने घर को गोत्र के बाहर के लोगो के हाथ अब भी नहीं बेच सकते थे। उद्योग- घधों और व्यापार की उन्नति के साथ-साथ उत्पादन की विभिन्न शाखामों के बीच-जैसे कि खेती, दस्तकारी, विभिन्न पेशो के अन्दर के विभिन्न शिल्पो, व्यापार, जहाजरानी, इत्यादि के बीच-श्रम का विभाजन और भी पूर्ण रूप से विकसित हो गया था। अब लोग अपने-अपने पेशों के अनुसार पहले से अधिक सुनिश्चित समूहों में बंट गये थे, और प्रत्येक समूह के कुछ ऐसे नये, ममान हित पैदा हो गये थे जिनके लिये गोन मे या बिरादरी मे कोई स्थान न था और इसलिये उनकी देखभाल करने के लिये नये पदों को कायम करना आवश्यक था। दासों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी और इस प्रारम्भिक अवस्था में भी वह स्वतंत्र एथेंसवासियों की संख्या से कही अधिक रही होगी। गोन-व्यवस्था शुरू मे दास-प्रथा से अपरिचित थी और इसलिये वह ऐसे किसी उपाय को नहीं जानती थी जिसके द्वारा दासों के इस विशाल जन-समुदाय को दबाकर रखा जा सकता। और , अन्तिम यात यह है कि व्यापार के आकर्षण से वहुत-से अजनबी एथेंस मे आकर वस गये थे, क्योंकि वहां धन कमाना ज्यादा आसान था; पुरानी व्यवस्था के अनुसार इन अजनबियो को न तो कोई अधिकार प्राप्त था और न कानून उनकी किसी तरह रक्षा करता था। एथेंसवासियों की सहनशीलता की पुरानी परम्परा के बावजूद, ये लोग जनता के बीच व्याघातकारी और विदेशी तत्त्व वने हुए थे। 10110 १४५
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